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________________ ( XXVIII) ४७४ ४८५ देवताओं द्वारा बालकोंकी रक्षा ४७२ ग्रहरोगाधिकारः ४७२ प्रहोपसर्गादिनाशक अमोघ उपाय ४७२ मनुष्योंके साथ देवताओंके निवास ४७२ ग्रहपीडाके योग्य मनुष्य ४७३ देवताविशिष्ठमनुष्यकी चष्टा ४७३ देवपीडितका लक्षण ४७३ असुरपीडितका लक्षण ४७३ गंधर्वपीडितका लक्षण ४७४ यक्षपीडितका लक्षण ४७४ भूतपितृपीडितका लक्षण राक्षसपीडितका लक्षण ४७४ पिशाचपीडितका लक्षण ४७५ नागग्रहपीडितका लक्षण ४७५ ग्रहोंके संचार व उपद्रव देने का काल ४७५ शरीर में ग्रहों का प्रभुत्व ४७६ ग्रहामयचिकित्सा ग्रहामयमें मंत्राबलिदानादि ४७६ ग्रहामयनघृततैल ग्रहामयनघृत, स्नानधूप, तैल ४७८ उपसंहार ४७८ अंत्यमंगल अथैकोनविंशः परिच्छेदः विषरोगाधिकारः मंगलाचरण व प्रतिज्ञा १८० राजाके रक्षणार्थ वैद्य ४८० वैद्यको पासरखने का फल ४८१ राजाके प्रति वैद्यका कर्तव्य विषप्रयोक्ताकी रक्षा ४८१ प्रतिज्ञा ४८२ विषयुक्तभोजनकी परीक्षा ४८२ परोसे हुए अन्नकी परीक्षा व हाथमुखगत विषयुक्त अन्नका लक्षण ४८३ आमाशयपक्काशयगत विषयुक्त अन्नका लक्षण ४८३ द्रवपदार्थगतविषलक्षण मद्यतोयदधितकदुग्धगतविशिष्ट विषलक्षण ४८४ द्रवगत व शाकादिगत विषलक्षण ४८४ दंतकाष्ठ, अवलेख, सुखवास व लेपगतविषलक्षण वस्त्रमाल्यादिगतविषलक्षण ४८५ मुकुटपादुकगतविषलक्षण ४८५ वाहननस्यधूपगतविषलक्षण ४८६ अंजनाभरणगतविषलक्षण विषचिकित्सा विषघ्नवृत ४८८ विषभेदलक्षणवर्णनप्रतिज्ञा ४८८ त्रिविधपदार्थ व पोषकलक्षण ४८९ विघात व अनुभयलक्षण ४८९ मद्यपानसे अनर्थ ४८९ विषका तीन भेद ४९० दशविधस्थावरविष मूलपत्राफलपुष्पविषवर्णन ४९१ सारनिर्यासत्वधातुविषवर्णन मूलादिविषजन्यलक्षण त्वक्सारनिर्यसनविषजन्यलक्षण ४९२ धातुविषजन्यलक्षण ४७७ ४८० ४९२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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