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अथ हिताहिताध्यायः ।
( ७२१ )
तथाचैवमुक्ता ह्याप्तगुणाः ।
ज्ञानममहतं तस्य वैराग्यं च जगत्पतेः । सदैश्वये च धर्मश्च सहसिद्धं चतुष्टयं ।। इति
हैं, इत्यादि अनेक श्लोकोंके कथनसे संपूर्ण पदार्थ द्रव्यगुणात्मक सिद्ध होते हैं, यह कथन स्याद्वादवादका आश्रय करके ही श्रीसुश्रुताचार्य ने अपने ग्रंथमें किया है। इसलिए स्याद्वादकी स्थिति ही उनको भी मान्य है यह निश्चित हुआ ।
इसलिए जिनेंद्रशासनमें प्रतिपादित तत्वोंको स्वीकारकर अन्योंके द्वारा प्रतिपादित एकांततत्वको त्यागकर विवक्षित अविवक्षित [ मुख्य गौण ] स्वरूप अनेक धर्मोंके. धारक ऐसे अनेक वस्तुवोंके प्रतिपादक प्राणावाय महागमरूपी समुद्रसे, निकली हुई लक्ष्मीके समान, संपूर्ण लोकके लिए हितकारक ऐसे लोकबंधु निर्दोषी वैद्यकी ओर से यह अनवद्यविद्या निकली है। अतएव आज भी वैद्यगण बहुत प्रसन्नताके साथ इसे अत्यादर से ग्रहण करते हैं।
. इसलिये यह जिनेंद्रके मुखकमल से निकला हुआ परमागम होनेसे, अतिकरुणा स्वरूपक होनेसे, सर्व जीवोंके प्रति दयापर होनेसे कोई कोई वैद्य जलौंक वगैरह लगाकर जो चिकित्सा करते हैं उसकी अपेक्षा जहांतक हो कदंब त्रिवर्णदशांगुलशारिका प्रयोगसे अजलूक चिकित्सा तिर्यंच व मनुष्योंकी करनेका प्रयत्न करें । क्यों कि वैद्य का धर्म है कि वह कोमल मनवाला हो, दूसरोंके लिए हितका व्यवहार करें, सबके साथ बंधुत्वका व्यवहार करें, प्राणियोंका सहायक बनें, और सर्व प्राणियोंको हितकामना से वैद्याचारको निरूपण करते हुए सत्यधर्मनिष्ठ, मैत्री, प्रमोद, कारुण्य, माध्यस्थ एवं क्षमा स्वरूप प्रज्ञा ज्ञान विज्ञान आदि अनेक गुणों से युक्त होकर पुरुषविशेषकी अपेक्षा से आगमानुसार चिकित्सा करें। वह क्यों ? इस के उत्तर में कहा जाता है कि
सर्व प्राणियो में दया करना, व्रतधारियो में संतोषवृत्ति को धारण करना, दीन व दुःखी प्राणियो में करुणा बुद्धिको धारण करना एवं निर्दय दुर्जनो में उपेक्षा या माध्यस्य वृत्तिको रखना सजन मनुष्योंका धर्म है । इस प्रकार आगम का कथन होने से इस आयुर्वेद शास्त्र में भी बहुत से जीवों के नाश के लिए कारणीभूत ऐसे मधुमद्यमांसादि कश्मल आहारों का ग्रहण करना अनेक दोषों के प्रकोपके लिये कारण है एवं समस्त व्याधियों की वृद्धिके लिए निमित्त है । अतएव पशुपति, बृहस्पति, गौतम, अग्निवेश्य, हस्तचारि, वाब्दलि, राजपुत्र, गाय, भार्गव, भारध्वज, पालकाप्य, विशाल, कौशिकपुत्र वैदर्य, नर, नारद, कुंभदत्त, विभांडक, हिरण्याक्षक, पाराशर, कौडिन्य, काथायिन,
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