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________________ कल्याणकारके भावार्थः-भल्लात पाषाण चूर्ण को गाय के दूध के साथ घोटकर कंडों की अग्नि से तीन पुट देना चाहिये। फिर वमन विरेचन आदि से जिस का शरीर शुद हुआ है ऐसा मनुष्य उस पुटित चूर्ण को दूध घी इक्षुरिकार ( मिश्री या शकर ) व अन्य उत्तम औषध मिलाकर पीवे या सेवन करे उस के जीर्ण होनेपर रसायन गुणयुक्त भोजन (दूध भात ) करे तो वह साक्षात् देव के समान बन जाता है ॥ ३० ॥ . खर्परीकल्प. प्रोक्तं यद्विषयं फलत्रययुत प्रख्यातसत्वपरी-। पानीयं प्रपिबन् विपक्वमसकृच्छुद्धात्मदेहः पुरा ।। षण्मासादतिदुर्बलोऽपि बलवान् स्थूलस्तथा मध्यमः । स्यादन्नं वरशालिज घृतपयोमिश्रं सदाप्याहरेत् ॥ ३१ ॥ भावार्थ:-प्रथम मनुष्य, वमनादिक से व कषाय आदि के निग्रह से अपने शरीर व आत्मा को शुद्धि कर के पश्चात् वह पूर्वोक्त त्रिफला रसायन के साथ श्रेष्ठ खपरी [ उपधातुविशेष को पानी के साथ पकाकर उस पानी ( क्वाथ ) को कई बार बराबर छह महीने तक पीवे तो अत्यंत दुर्बल मनुष्य भी बलवान् हो जाता है और अत्यंत स्थूल ( मोटा ) भी मध्यम [ जितना चाहिये उतना ] होता है । इसके सेवन काल में, घी दूध के साथ उत्तम चावल के भात को सदा खाना चाहिये ॥३१॥ खपरीकल्प के विशेषगुण. अब्दं तद्विहितक्रमादनुदिनं पीत्वा तु तेनैव स-1 . . स्नातंः स्निग्धसनुर्विधानविहितावासो यथोक्ताहतिः ॥ मत्यद्रस्सुरसन्निभी बलयुतस्साक्षादनंगीपमो । जीवेद्वर्षसहस्रबंधुरतरो भूत्वातिगः सर्वदा ॥ ३२ ॥ भावार्थ:-उपर्युक्त खर्पण कल्प को एक वर्ष पर्यंत पूर्वोक्त क्रम से प्रतिनित्य सेवन करे एवं उस के सेवन कालमें उसी के जल से स्नान करे, शरीर को चिकना करे [तैल मालिश करते रहे पूर्वोक्त प्रकार के मकान में निवास करे एवं आहार [घी दूध से युक्त भात ] का सेवन करे तो वह मनुष्य चक्रवर्ती व देव के समान बलवान्, व काम देव के समान, सब को अतिक्रमण करने वाला, अत्यंत मनोहर तरुणरूप के धारी होकर हजार वर्ष तक जीता है ॥ ३२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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