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कल्पाधिकार।
निर्मल पाषाण चूर्ण को एकत्रित करें। आटंक प्रमाण वह भल्लात पाषाण चूर्ण, आढक प्रमाण उत्तम गोघृत, आढक प्रमाण भल्लातक [ मिलावा ] तैल, और आढक, प्रमाण शुद्ध गुड इन को चार आढ़क विधि प्रकार तैयार किये हुए भल्लातक भूल के कषाय से यथाविधि सिद्ध करें अर्थात् अवलेह बनाये । इस प्रकार साधित : एक द्रोण इस प्रमाण औषधिको शुद्ध शरीर व शुद्ध संयमबाला सिद्ध मंदिर में पूजा करें। इस द्रोण प्रमाण उत्तम औषधि को प्रतिनित्य क्रमसे कुछ नियत प्रमाण में चाटना चाहिये ।
और औषधिके जीर्ण होनेपर पूर्वोक्त प्रकार के योग्य मकान में रहते हुए घृत व दूध से मिश्रित शाल्यन्नका भोजन करना चाहिये एवं हमेशा स्नान अभ्यंग ( मालिश ) लेपन आदि से शरीर का संस्कार भी करते रहना चाहिये । यह ध्यान रहे कि स्नान, अभ्यंग लेपन आदि संस्कार जिसके ऊपर किये गये हों उसे ही इस कल्पका सेवन कराना चाहिये ॥. २.६ ॥ २७ ॥ २८ ॥.
भल्लातपाषाणकल्प के विशेष गुण तद्रोणं कथितौषधं सुचरितश्शुद्धात्मदेहस्वयं । लीला गूढनिवातवेश्मानि मुखं शय्यातले संवसन् ॥ नित्यं सत्यतमवतः प्रतिदिनं जैनेंद्रमंत्राक्षरो। .....
दीर्घायुबलवान जयत्यतितरां रोगेंद्रवंदं नरः ॥ २९ ॥ भावार्थः- सदाचारी, शुद्धात्मा ( कषायरहित ) व शुद्ध शरीरवाला [ वमनादि पंचकर्मोंसे शुद्ध ] गुप्त व वातरहित मकान में सुखशय्या पर प्रतिनित्य सत्य, ब्रह्मचर्यादि व्रत पूर्वक, जिनेंद्र देव के मंत्रोंको उच्चारण करते रहते हुए उपरोक्त औषधि को एक द्रोण प्रमाण सेवन करें तो वह दीर्घायु व. बलवान होता है एवं . वह बड़े से बड़े २ रोगराजों को भी जीतता है ।। २९ ॥
.. .. द्वितीयभल्लातपाषाणकल्प. भल्लातोपलचूर्णमप्यभिहितं गोक्षीरपिष्टं पुटैः। . दग्धं गोमयवन्हिना त्रिभिरिह पाक्छुद्धितः सर्वदा ॥ क्षीराज्यभुविकारमिश्रितमलं पीत्वात्र सद्भेषजै- ॥
ओर्ण चारुरसायनाहतियुतः साक्षाद्भवेदेववत् ॥ ३० ॥ १ चार सेर का एक आढक, चौसठ तोले की एक सेर; चार आढक का एक द्रोण... : २ पाव हिस्सा पानी रहे उस प्रकार सिद्ध कषाय, यह भी अधिकाथका अर्थ हो सकता है।
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