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________________ (६९२) कल्याणकारके .F. शरीर में इतनी शक्ति उत्पन्न होती है जिससे वह सब शत्रुओंको जीत सकता है । उसी प्रकार उस में उत्तमोत्तम गुण और वीर्य उत्पन्न होते हैं ।। २४ ॥ पाषाणभेद कल्प. नानावृक्षफलोपमाकृतियुताः पाषाणभेदास्स्वयं । ज्ञात्वा तानपि तत्फलीबुबहुशः पक्वान् सुचूर्णीकृतान ।। कृती श्रीरघृतभुजातसहिलान् जीणे पयस्सर्पिषा । भुक्त्वान्न वरशालिज निजगुणैर्मयोऽमरम्स्यादरम् ॥ २५ ॥ भावार्थ:-- अनेक वक्षों के फलों के आकार में रहने वाले पाषाण भेदों को (पखान भेदः) अच्छी तरह जानकर उनको उन्ही के फलों के बवाथ से कई बार पकाकर अच्छीतरह चूर्ण करें और उसे दूध घी शक्कर या गुड के साथ खावे उस के जीणे होने पर दूध घृत,के.साथ. उत्तम चावल के भात को खावें । इस के सेवन से मनुष्य अपने गुण व शरीर से साक्षात् देव के समान बन जाता है ॥ २५ ॥ भल्लातपाषाण कल्प. प्रख्यातोसमकोलिपाकनगराद्व्यतिमात्राये। पूर्वस्यां दिशि कृष्णमेकमधिक भल्लातपाषाणकम् । तत्पाषाणनिजाभिधानविहितग्रामोपि तत्पार्वत- । सधान्यैरवगम्य सर्वममलं पाषाणचूर्ण हरेत् ॥ २६ ॥ तच्चूहिकमाढकं घृतवरं भल्लाततैलाढकं ।'. शुद्धं चापि गुडाटक बहुम्लम्संसिद्धभल्लातका- ॥ निकायश्च चतुर्भिराढकमितः पंक तथा द्रोणम-1 प्यतच्छुद्धतनुर्विमुद्धचस्तिस्सिद्धालये पूजयेत् ॥ २७ ॥ 'द्रोण तद्वस्मषजं प्रतिदिन मात्रां विदित्वा क्रमात लीद्धा भेषजजीर्णतामपि तथा प्रोक्तोरुवेइमस्थितः ॥ शालीनां प्रवरौदन घृतपयोमिश्रं समश्नन्नरः । नानाभ्यंगविलेपनादिकृत संस्कार भवेत्सर्वदा ॥ २८ ॥ भावार्थ:--प्रख्य त कोलिपाक नगर से तीन के स पूर्व दिशा में एक भल्लातकपाषाण नामक एक विशिष्ट काला पायाण (पत्थर ] मौजूद है। उसी के आस पास भल्लातपाषण नामक ग्राम भी है। इन बातों से व अन्य चिन्हों से उसे पहिचान कर S : .. . . 7 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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