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________________ कल्पाधिकारः। है। ऐसे शिलाजीत को यथाविधि सेवन करना चाहिये । शिलाजीत त्रिफला का काढ़ा, दूध, घी इन के साथ मिला कर, महान् कफ, पिन, वातजन्य विकार में सेवन करें। सर्व रसों में श्रेष्ठ यह शिलाजीत कनक ( सोने से युक्त) सहित है और सम्पूर्ण व्याधियों को नाश करनेवाला श्रेष्ठ औषध है ॥ २२ ॥ कृष्ण शिलाजतुकल्प. ऊषाप्येषा विशेषा जतुवादिभवत्पंचवर्णा सवर्णा । व्यापार पारदीयोपमरसवरषट्रसर्वलोहानुषी॥ तामूषां टङ्कगुंजाघृतगुलमधुसमर्दितं शृद्धमाव- । ावेदादत्यनूनं जनयति कनकं तरक्षणादेव साक्षात् ॥ २३ ॥ भावार्थ:-कृष्ण [ काला | शिलाजीत नामक शिलाजति का एक भेद है, उसे उषा कहते हैं, वह लाख के समान द्रव व चमकीला रहता है। उस में पंचवर्ण स्पष्ट दिखते हैं । उसे पारद कर्म में उपयोग करते हैं । यह छह धातुवोंको द्रव करने वाला है। इस प्रकार के काले शिलाजीत के साथ टंकणक्षार, गुंजा, घृत, मधु और गुड को मंत्रित कर एवं मर्दितकर अग्नि में रखकर फूंकने से कुछ समय में ही उस से सुवर्ण निकलता है ॥ २३ ॥ वाभ्येषाकल्प. वाम्येषामविषां विचार्य विषविद संभक्षिका पतिभिः । संभक्ष्याक्षयता बजेदिल्ललितां क्षाराज्यसशर्कराम् ॥ भुक्त्वात्राप्यशन घृतेन पयसा शाकाम्लपवादिसं-। वा निर्जितशत्रुरुर्जितगुणो वीर्याधिकस्स्यान्नरः ॥ २४ ॥ भावार्थ:----विष को जाननेवाला वैद्य पक्षियों के द्वारा खोये हुए, निविष ऐसा वम्येषा [ कवचबीज वा तालमखाना ] को विचार पूर्वक ( सविष है या निर्विष? ) प्रहण कर दूध घी, शक्कर के साथ मिला कर सेवन करावे । इस के सेवन काल में धी दूध के साथ भात खानेको देवे और शाक अम्ल, पत्राशाक आदि खाने को न दें क्यों कि ये वर्जित है । इस विधि से उसे सेवन करनेसे मनुष्य अक्षयत्व को प्राप्त होता है अर्थात् जब तक आयुष्य है तब तक उस का शरीर जवान जैसा हृष्ट पुष्ट बना रहता है। उसके १ इस से य: जाना जाता है कि वह सविष या निर्विष है ! क्यों कि सविषको पक्रियां नहीं खाती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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