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‘कल्पाधिकारः।
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भावार्थ:-पत्थर के फूल के कल्क, निंब व कुनिंब की छाल के साथ व'शिलाजीत के साथ शिलाजल को पावें तो सर्व प्रकार के कुष्ठ नष्ट होते हैं... १.४.॥
शयनाशक कल्प। अपि शिलोद्भववल्कलकल्कककथितगव्यपयःपरिमिश्रितः । मगधजान्वितसत्सितयान्वितः क्षयगदः क्षपयत्क्षणमात्रतः॥ १५ ॥
भावार्थ:--पत्थर के फूल व शिलावल्क के कल्क के साथ कथित गौदुग्ध के साथ पीपल व शक्कर को मिलाकर सेवन करने से अतिशीघ्र' क्षयरोग दूर होता है ॥ १५ ॥
बलवर्धक पायस. अपि शिलोत्थमुवल्कलचूामाश्रतपयः परिपाचितपायसम् । , सततमेव मिषव्य सुदुबैलोऽप्यतिबलो भवति प्रतिमासतः ॥ १६ ॥ । भावार्थ:--शिलाबल्कके चूर्ण के साथ दूध का मिश्रण कर उस से पकाये हुए खीरका सतत सेवन करें तो एक महिने में अत्यंत दुबल भी अ त बलवान होता
शिलावल्कलोंजनकल्प अपि शिलामलवल्कलचूर्णसंयुतमलक्तकसत्पटल स्फुटम् । घृतवरेण कृतांजनमंजसा कुरुत एतदनिधशा दृशा ॥ १७ ॥
भावार्थ:-शुद्ध शिलावल्कलके चूर्ण के साथ. लाख के पटल को मिलाकर घी के साथ अंजन तैयार करें तो वह अंजन सदा आंखोंके लिये. उपयोगी है ॥१७॥
___ कृशकर व वर्धनकल्प. इह शिलोद्भववल्कलमंबुना पिव फलनिकमचिमिश्रितम् । कृशकरं परमं प्रतिपादितं धृतसितापयसी परिहणम १८॥
भावार्थ:--शिलावल्कल के काय के साथ फैिला चर्ण को मिलाकर पीयें तो कृशकर है। वहीं धृत, शक्कर व दूध के साथ सेवन कर । रसों की वर्द्धक है ॥१८॥
उपलवल्कलकल्कनिषेवणादाखिल गगणः प्रलय व्रजेत् । त्रिफलया सह शर्करया घृतैर्मगधजान्वितचारुविडंगः ॥१९॥
भावार्थ:-शिला की छाल के कल्क को त्रिफला, शक्कर, वत, पीपल व वाय बिडंग के साथ सेवन करें तो सई रोग को वह नाश करता है ॥ १९ ॥
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