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________________ (६८८) कल्याणकारक त्रिफलां पिब गव्यघृतेन युतां त्रिफलां सितया साहितामथवा । त्रिफलां ललितातिबलाललितां त्रिफलां कथितां तु शिलाजतुना ॥ १० ॥ भावार्थ:--त्रिफचा को गोवृत के साथ पीना चाहिये, त्रिफला का शक्कर के साथ में पीना चाहिये, अथवा त्रिफला को अतिबला के साथ सेवन करना चाहिये और त्रिफला को शिलाजीत के साथ कषाय कर पीना चाहिये ॥ १० ॥ इति योगविकल्पयुतां त्रिफलां सतत खलु यां निपिवेन्मनुजः । स्थिरबुद्धिबलेंद्रियवीर्ययुतश्चिरमायुररं परमं लभते ॥ ११ ॥ भावार्थ:-इस प्रकार अनेक विकल्पके योगों से युक्त त्रिफला रसायन को सतत पीने से यह मनुष्य स्थैर्य, बुद्धि, बल, इंद्रियनैर्मल्य, वीर्य आदियों से युक्त होता है और दीर्घ आयुष्य को प्राप्त करता है ॥ ११ ॥ शिलाजतु योग. एवं शिलाजतु शिलोद्भवकल्कलोह- । कांतातिनीलघनमप्यतिसूक्ष्मचूर्णम् ॥ कृत्वैकमेकमिहसत्रिफलाकषायैः । संभावितं तनुभृतां सकलाभयघ्नम् ॥ १२॥ .. भावार्थ:-इसी प्रकार शिलाजीत, पत्थरका फूल, इनका कल्क, लोहभस्म, नागरमोथा, अतिनील, बडी इलायची, इनको अलग २ अच्छीतरह चूर्ण कर प्रत्येक को त्रिफला कषायस भावना देवें । फिर उसका सेवन करें तो सर्व प्रकार के रोगों को वह नाश करता है ॥ १२ ॥ शिलोद्भव कल्प. अथ शिलोद्भवमप्यतियत्नतः खदिरसारयुत परिपाचितम् । त्रिफलया च विपक्कमिदं पिबन् हरति कुष्ठगणानतिनिष्ठुरान् ॥ १३ ॥ भावार्थ:-पत्थर के फूल को खदिरसार के साथ अच्छीतरह बहुत यत्नपूर्वक पकावे, फिर उसे त्रिफला के साथ पकायें । उस को सेवन करने से भयंकर से भयंकर कुष्ठ रोग भी दूर होते हैं ॥ १३ ॥ शिलाजतुकल्प. यदि शिलानतुनापि शिलोदकं पिब सदैव शिलोद्भववल्कलैः । अपि च निवानेव सुक्षकैनिखिलकुष्ठविनाश करं परम् ।। १४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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