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________________ कल्पाधिकारः । (६८७) ___ हरीतक्यामलक भेद. अभयानलमित्यदीरितं विमलं ह्यामलकं फलोत्तमं । हिमवाच्छशिरं शरीरिणामभयात्युष्णगुणा तु भेदतः ॥५॥ . भावार्थ:-----अभया अग्निवर्द्धक कही गई है । आमलक ( आमला ) फल फलों में उत्तम व निर्मल हैं। आमला हिम के समान अत्यंत शांत है । और अभया अति उष्ण है । यही इन दोनो पदार्थो का गुणकी अपेक्षा भेद हे ॥ ५॥ त्रिफलागुण. अभयेति विभीतको गुणैरुभयं वति सुभाषितं जिनः । त्रिफलेति यथार्थनामिका फलतीह त्रिफलान् त्रिवर्गजान् ॥६॥ भावार्थ:-अभयाके समान ही बहेडा भी गुण से युक्त है ऐसा श्री जिननाथ ने कहा है । इसलिये हरड बहेडा व आमला ये तीनों त्रिफला कहलाते हैं और त्रिदोष वर्ग से उत्पन्न दोषों को दूर करते हैं । इसलिये इनका त्रिफला यह नाम सार्थक है॥६॥ त्रिफला प्रशंसा त्रिफला मनुजामृतं भुवि त्रिफला सर्वरुजापहारिणी । त्रिफला वयसश्च धारिणी त्रिफला देहदृढत्वकारिणी ॥७॥ त्रिफला त्रिफलेति भाषिता विबुधैरद्भुतबुद्धिकारिणी । . मलशुद्धिकृदुद्धताग्निकृत्स्खलितानां प्रवयो वहत्यलम् ॥ ८ ॥ भावार्थ:-त्रिफला मनुष्यों को इस भूलोक में अमृतके समान है, वह सर्व रोगों को नाश करनेवाली है। त्रिफला मनुष्यों को जवान बनाये रखनेवाली है और शरीर में दृढता उत्पन्न करती है। त्रिफला तीन फलोंसे युक्त है ऐसा विद्वानोंने कहा है । वह अद्भुत बुद्धि उत्पन्न करती है, मल शोधन करती है, और अग्नि दीपन करती है। इतना ही नहीं वृद्ध होकर शक्ति से स्खलितों को भी शक्ति प्रदान करती है ।। ७ ।। ८ ॥ त्रिफलायसमाक्षिकमागाधिका सविडंगसुभृगरजश्च समम् ! त्रिगुणं च भवेदपि वालुवकं पयसेदमृतं पिब कुष्ठहरम् ॥ ९ ॥ भावार्थ:-त्रिफला को यदि लोहभस्म, सोनामाखी, पीपल, वायविडंग, भंगरा के चूर्ण के साथ उपयोग करें तो तीन गुण को प्रकट करता है । और इन को ही दूध के साथ उत्योग करें तो यह कुष्ठ रोग को भी दूर करने वाला अमृत है ॥ ९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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