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केल्याणकारके
के बाद इसे उपर्युक्त रसों के साथ जो उस के बराबर हो मृदु अग्नि में पका कर धान्य राशि में चार महिने तक रखें । पश्चात् उसे निकाल कर पूजन करें। अनंतर काश के समान सफेद बालों पर त्रिफला के कल्क लेपन कर त्रिफला के काढे से ही धोडालें। बाद उपर्युक्त औषधि को शीघ्र ही केशों पर लगायें। जिस से केश कज्जल की राशि के समान काले व चमकील हो जाते हैं ।। ९९ ॥१००॥ १०१ ॥
महा अक्ष तैल काश्मर्या बीजपूरपकटतरकपित्थाम्रबुद्रुमाणां । शैलेयस्यापि पुष्पाण्यमृतहटमहानालिकामोदयंती ॥ नीलीपत्राणि नीलांजनतुवरककासीसपिण्डीतबीजम् । वर्षाभूसारिवा यासितातिलयुतयष्ट्याव्हका काणकाली ॥१०२॥ पद्मं नीलोत्पलाख्यं मुकुलकुवलयं तत्र संभूतपर्छ । वर्षाशं कल्कितान्तानसनखदिरसारोदकैस्त्रैफलैश्च ।। एतत्सर्व दशाहं निहितमिहमहालोहकुंभे ततस्तैः। कल्कैः प्रोक्तः कषायैर्दशभिरतितरां चादैकरतलम् ॥ १०३ ।। स्यादत्रैवाढकं तन्मृदुपचनविधी लोहपात्रे विपकं । ततैलं भैषजेरा दृढतरविलसल्लोहपात्रे न्यसद्वा । तेलेनतेन यत्नाभियतपरिजनः शुद्धदेहो निवाते । गेहे स्थित्वा तु नस्य वलिपलितजराक्रांतदेहं प्रकुर्यात् ॥१०४॥ कृत्वा तैलवरेण नस्यमसकृन्मासं यथोक्तं बुध- । मर्त्यः स्यात्कमलाननः प्रियतमो वृद्धोऽपि सद्यौवनः ॥ तेनेदं महदक्षतलममलं दद्यात प्रियेभ्यो जने-- ।..
भ्यःसंपत्तिसुखावहं शुभकर तत्कतुरथोंगमम् ॥ १०५॥ भवार्थ:-कम्भारी बीजौरा निंबू, कैथ, आम, जामुन, शैलेय [ भूरि छरीलागंध व्यविशेष ] इन के फूल, गिलोय, हट [ शिवार] महानील, वनमल्लिका, नीलके पत्ते, नीलांजन [तूतिया या सुरमा] तुवरक, कसीस, मेनफलका बीज, पुनर्नवा,सारिबा,कालेतिल, मुलैठी, काणकाली, सफेद कमल, नीलकमल, मोलतिरी, लालकमल, और कमल रहने के स्थान की कीचड, इन सब को एक २ तोला लेकर उस में विजयसार, खैर का सार भाग, त्रिफला इन के काथ मिलाकर करक तैयार करें और उसे एक लोहे के बडे
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