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सर्वोषधकर्मव्यापच्चिकित्साधिकारः ।
[ इस ] कल्क व नीली, भांगरा, त्रिफला इन के क्वाथ से तिल के तैल को तब तक पकावें जब तक उस तैल के लगाने से सफेद बाल काले न हों। इस प्रकार साधित तेल को एक मजबूत लोहे के वडे में भर कर एक महीने तक रखें पश्चात् उसे निकाल कर सफेद बालों पर लगावे और यत्नपूर्वक इस का नस्य लेवे तो संपूर्ण बाल भ्रमरपंक्ति व नीलांजन के सदृश काले हो जाते हैं और उन के जड मनोहर चुंबक लोह के समान मजबूत हो जाते हैं । जिस के वजह से कपाल भी रंजायमान होता है ॥९६॥९७॥९८॥
नीलीभृगरसं फलत्रयरसं प्रत्येकमेकं तथा । तैलं प्रस्थमितं प्रगृह्य निखिलं संलोड्य संस्थापितम् ॥ सारस्यासनवृक्षजस्य शकलीभूतस्य शूर्प घटे । भल्लातक्रियया ाधो निपतितं दग्ध्वा हरदासचम् ॥ ९९ ॥ ताम्रायोऽजनघोषचूर्णमाखिल प्रस्थं प्रगृह्यायसे । .. पात्रे न्यस्य तथा समेन सहसा सम्मदयेन्निद्रवम् ॥ तं तैः प्रोक्तरसैः पुनस्सममितैः अग्नौ मृदौ पाचितं । धान्ये मासचतुष्टयं सुनिहितं चोदत्य संपूजयेत् ॥ १००। केशान्काशसमान्फलत्रयलसत्कल्कन लिप्ता-पुनः । धौतांस्तत्रिफलोदर्कन सहसा संमृक्षयेदौषधम् ॥ वक्त्रे न्यस्य सुकांतवृत्तमसकृत्संचारयेत्संततं ।
साक्षादंजनपुंजमेचकनिभः संजायते मूर्धजः ॥ १०१॥ भावार्थः-नील, भांगरे के रस, त्रिफला के क्वाथ ( काढा ) ये प्रत्येक एक २ प्रस्थ ( ६४ तोले ) और तिल का तैल एक प्रस्थ लेकर सब मिलाकर रखें । विजयसार वृक्ष के सार ( वृक्ष के बाहर की छाल को छोडकर अंदर का जो मजबूत भाग होता है वह ) के टुकडों को दो द्रोण प्रमाण लेकर, घडे में भरे और भिलारे के तैल निकालने की विधि से, अग्निसे जलाकर अधःपातन करके उस का आसप निकाले। फिर, ताम्र, लोह, नीलांजन, [सुरमा कांसा, इन के (समभाग विभक्त) एक प्रस्थ चूर्ण को • लोह के पात्र में डालकर द्रव पदार्थ के बिना ही अच्छीतरह बोटना चाहिये । वोटने
... १ तैल. पकाते समय उस तेलको हाथ में लेकर सफेद बाल या बगलेके पंखा ले उसपर लगाकर
देखें। यदि वह काला न हुआ तो फिर उक्त काथ व कल्क डाल कर पकावें । इस प्रकार जब तक बाल काला न हो तब तक बार २ क्वाथ कल्क डाल कर पकाना चाहिये ।
२ दो चरणोंका अर्थ ठीक लाता नहीं।
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