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________________ सर्वोषधकर्मव्यापचिकित्साधिकारः । (६५५) .. भावार्थ:-इस प्रकार हमने प्रतिमर्श नस्य का निरूपण क्रिया, अब आगे शिरोविरेचन का प्रतिपादन अच्छतिरह करेंगे। नासागत औषधक्रिया ( औषध को नाक के द्वारा प्रवेश करनेवाला क्रियाविशेष ) को नस्य कहते हैं यह लोक में प्रसिद्ध है । शिरोविरेचन नस्य का प्रयोग रूक्ष औषधियों द्वारा भी होता है ॥१॥ शिरोविरेचन द्रव की मात्रा. वैरैचनद्रवकृतं परिमाणमेतत् संयोजयद्धि चतुरश्चतुरश्च बिंदुन् । एवं कृता भवति सपथमा तु मात्रा मात्रा ततो द्विगुणितद्विगुणक्रमेण||७२॥ भावार्थ:--शिरोविरेचन द्रव को एक २ नाक के छेदों में चार २ बिंदु डालना चाहिये । यह विरेचन द्रव की पहिली [ अत्यंत लघु ] भात्रा है । इस मात्रा से द्विगुण मध्यम मात्रा, इस से भी द्विगुण उत्तममात्रा है। इस प्रकार शिरोविरेचन के द्रव का प्रमाण जानना ॥७२॥ मात्रा के विषय में विशेष कथन. तिस्रो भवंति नियतास्त्रिपुटेषु मात्रा । उत्क्लेदशोधनमुसंशमनेषु योज्य:॥ . दोषोच्छ्रयेण विदधीत भिषक् च मात्र । मात्रा भवेदिह यतः खलु दोपशुद्धिः ॥ ७३ ॥ भावार्थ:---उत्क्लेद, शोधन, संशमन इन तीन प्रकार के कार्यों में तीन प्रकार की नियतमात्रा होती है । इन को उत्क्लेदनादि कर्मों में प्रयोग करना चाहिये। दोषों के १ इस शिरोविरेचन द्रव के प्रमाण में कई मत है । कोई तो जघन्य मात्रा चार बिन्दु मध्यम मात्रा छह बिन्दु, व उत्तम मात्रा आठ बिंदु ऐसा कहते हैं । और कई तो जघन्य चार बिन्दु और आगे मध्यम उत्तम मात्रा जघन्य से द्विगुण २ त्रिगुण २ चतुर्गुण भी कहते हैं। इस लिये इस का मुख्य तात्पर्य इतना ही है कि जघन्य मात्रा से आगे के मात्राओं को दोषबल पुरुषबल आदि को देखते हुए कल्पना कर लेनी चाहिये । जघन्य मात्रा ४ बिन्दु है यह सर्वसम्मत है। इस विषय में अन्य ग्रंथ में इस प्रका चतुरश्चतुरो विन्दुनैककस्मिन् समाचरत् । एषा लध्वी मता मात्रा तथा शीघ्र विरेचयेत् ॥ अध्यधा दिगुणां वापि त्रिगुणां वा चतुर्गुणां । यथाव्याधि विदित्वा तु मात्रां समवचारयेत् ॥ २ करोति इति पाठांतरं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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