________________
कल्याणकारके
भावार्थ:-आठ अंगुल लम्बी शर [तुली] लेकर उसपर [क्षौम सण या रेशमी] वस्त्र लपेटे । उस के ऊपर निर्मल गुग्गुल, राल, स्नेह, [घृत या तैल ] इन को अच्छी तरह मिलाकर लेप कर दे (पछि इसे अच्छी तरह सुखाकर अंदर से शर निकाल लेवे तो धूमपान की बत्ती तैयार हो जाती हैं इस बत्ती को धूमपान की नली में रख कर, उस पर आग लगा कर ) जिन के शरीर रूक्ष हो इन के इस धूम का सेवन करावे इसे स्नेहिक या स्नेहनधूम कहते हैं ॥ ३६॥
प्रायोगिकवैरेचनिक कासघ्नधूमलक्षण. एलालवंगगजपुष्पतमालपत्रैः प्रायोगिके वमनकैरपि वामननीये । वैरेचने तु बहुधोक्तशिरोविरेकैः कासघ्न के प्रकटकासहरौषधैस्तु ॥३७॥
भावार्थ:-- इसी प्रकार इलायची, लवंग, नागकेशर, तमालपत्र, इन प्रायोगिक औषधियों से पूर्वोक्त क्रम से बत्ती तैयार कर इस से धूम सेवन करावें इसे प्रायोगिक धूम कहते है । वामक औषधि यों से सिद्ध बत्ती के द्वारा जो धूम सेवन किया जाता है उसे वामक धूम कहते हैं । विरेचन द्रव्यों से बत्ती बनाकर जो धूम सेवन कराया जाता है उसे विरेचनधूम कहते हैं | कासनाशक औषधियों से बत्ती तैयार कर जो धूम सेवन कराया जाता है उसे कासध्न धूम कहते हैं ॥ ३७॥
धूमपान की नली की लम्बाई. प्रायोगिके भवति नेत्रमिहाष्टचत्वारिंशत्तथांगुलमितं घृततैलमिटे। द्वात्रिंशदेव जिननाथसुसंख्यया तं वैरेचनेन्यतरयोः खलु षोडशैव ॥३८॥
भावार्थः–प्रायोगिक धूम के लिये, धूमपान की नली ४८ अडतालीस अंगुल लम्बी, स्नेहन धूम के लिये नली ३२ बत्तीस अंगुल लम्बी, और विरेचन व कासान धूम के लिये १६ सोलह अंगुल लम्बी होनी चाहिये ऐसा जिनेंद्रशासन में निश्चित संख्या बतलायी गयी है ॥ ३८॥
___ धूमनली के छिद्रप्रमाण व धूमपानविधि. छिद्रं भवेदधिकमाषनिपाति तेषां स्नेहान्वितं हर मुखेन च नासिकायाम्। प्रायोगिक तमिव नासिकया विरेकमन्यं तथा मुखत एव हरेद्यथावत्।।३९॥
भावार्थ:-उपरोक्त धूमपान की नलियों का छिद्र (सराक) उडद के दाने को बराबर होना चाहिये ॥ स्नेहनधूम को मुग्व [मुंह } और नाक से खींचन।
१ यह प्रमाण आगे के भाग का है ॥ जड में छिद्र अंगूठे जितना मोटा होना चाहिये।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org