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सर्वोषधकर्मव्यापचिकित्साधिकारः । (६४५)
मार्कल (मक्कल ) शूल और उसकी चिकित्सा.. तहुशोणितनिमित्तमपीह शूलं सम्यग्जयेदधिकमार्कलसंज्ञितं तु । .. तद्वस्तिभिर्विधिवदुत्तरबस्तिना च प्रख्यातभेषजगणैरनिलापनुद्भिः॥३३॥
भावार्थः- प्रसूता स्त्री के दूषित रक्त का स्राव बराबर न होने पर भयंकर शूल उत्पन्न होता है जिसे मार्कल [ मक्कल ] शूल कहते हैं। उसे पूर्वोक्त श्रेष्ठ आस्थापन, अनुवासन बस्ति के या उत्तरबस्ति के प्रयोग से एवं वातहर प्रसिद्ध औषधिवर्ग से चिकित्सा कर के जीतना चाहिये ॥ ३३ ॥
उत्तरबस्तिका विशेषगुण. तदुष्टशोणितमसृग्दरमुग्रमूत्र-। कृच्छ्राभिघातबहुदोषसुबस्तिरोगान् ॥ .योन्यामयानखिलशुक्रगतान्विकारान् ।
मौद्रितान् जयति बस्तिरिहोत्तराख्यः ॥ ३४॥ . भावार्थ:-उपर्युक्त दूषितरक्तजन्य रोग, रक्तप्रदर, भयंकर मूत्रकृच्छ, और मूत्राघात, बहुदोषों से उत्पन्न होनेवाले बस्तिगत रोग, योनिरोग, शुक्रगत सम्पूर्ण रोग मर्मरोग, इन सब को उत्तरबस्ति जीतता है । अर्थात् उत्तरवस्ति के प्रयोग से ये सब रोग ठीक या शांत हो जाते हैं ॥ ३४ ॥
___ धूम, कवलग्रह, नस्यविधिवर्णनप्रतिशा और धूम भेद. . अत्रैव धूमकबलामलनस्ययोगव्यापचिकित्सितमलं प्रविधास्यते तत् ।
धूमो भवेदतितरामिह पंचभेदः स्नेहप्रयोगवमनातिविरेककासैः ॥३५॥
भावार्थ:-अब यहां से आगे, धूमपान, केवलग्रह, नस्य इन की विधि व इन का प्रयोग यथावत् न होनेसे उत्पन्न आपत्तियां और उन की चिकित्साविधि का वर्णन करेंगे । धूम, स्नेहन, प्रायोगिक, वमन, विरेचन व कासन के भेद से पांच प्रकार का है ॥३५॥
स्नेहनधूमलक्षण. अष्टांगुलायतशरं परिवष्ट्य वस्त्रेणालेपयेदमलगुग्गुलसर्जनाम्ना । स्नेहान्वितेन बहुरूक्षतरः शरीरे स स्नेहिको भवति धूम इति प्रयुक्तः॥३६॥ १ नस्यैरिति पाटांतर. २ सूत्रेण इति पाठांतरं. ..
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