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________________ (६४) कल्याणकारके भावार्थ:--बच्चा जन्म लेते ही उस के शरीर पर लगी हुई जरायु को साफ करे तथा सेंधानमक, और वीसे मुख को शुद्ध करे ( थोडा घी और सेंधानमक को मिलाकर अंगुलिसे चटा देवे जिस से गले में रहा हुआ कफ साफ होता है ) पश्चात् नाभि में लगे हुए नाल [नाभिनाडी] को साफ कर, और आठ अंगुल प्रमाण छोडकर वहां जहां आठ अंगुल पूरा होते हैं ] मुलायम डोरी से बांधे और वहीं से काट देवें । अनंतर नालपर तैल ( कूट के तैल ) लगा कर उसे बच्चे के गले में बांधे ॥ २९॥ अनंतर विधि. पश्चाद्यथा विहितमत्र सुसंहितायां तत्सर्वमेव कुरु बालकपोषणार्थम् । तां पाययंत्प्रसविनीमतिललिप्तां स्नेहान्विताम्लवरसोष्णतरां यवागृम्॥३०॥ . भावार्थ:-तदनंतर इसी संहिता में बालक के पोषण के लिये जो २ विधि बतलाई गयी है उन सब को करें एवं प्रसूता माता को तेलका मालिश कर स्नेह व आम्लसे युक्त उप्ण यवागू पिलाना चाहिये ।। ३० ॥ अपराक्तन के उपाय. हस्तेन तामपहरेदपरां च सक्ताम् ता पाययेदधिकलांगलकीसुकल्कैः । संलिप्य पादतलनाभ्युदरप्रदेशं संधूप्य योनिमथवा फणिचर्मतैलैः ॥३१॥ भावार्थ:-यदि अंपग [ झोल नाल ] नहीं गिरे तो उसे हाथ से निकाल लेवे अथवा उसे कलिहारी के कल्क को पिलाना चाहिये। अथवा कलिहारी के कल्ल को पादतल [ पैर के तलवे ] नभि उदर इन स्थानों में लेप करें । अथवा सर्पकी कांचली व तैल मिलाकर इस से योनिमुख को धूप देवे । [ इस प्रकार के प्रयोग करने से शीघ्र ही अपरा गिर जाती है ] ॥ ३१ ॥ सूतिकोपचार. एवं कृता सुखवती सुखसंप्रमूता स्यात्सूतिकेति परिणति ततः प्रयत्नात् । अभ्यंगयोनिबहुतर्पणपानकादीन् मासं कुरु प्रबलवातनिवारणार्थम् ॥३२॥ भावार्थः -- इस प्रकार की विधियों के करने पर सुखपूर्वक अपरा गिर जाती है। बच्चा और अपरा बाहर आने पर उस स्त्रीको सूतिका यह संज्ञा हो जाती है। तदनंतर उस सूतिका स्त्री के प्रबल वातदोष के निवारण के लिये तेल का मालिश, योनितर्पण, पानक आदि वातनाशक प्रयोग एक महीने तक करें ॥ ३२ ॥ १ यदि अपरा नहीं गिरे तो पेट में अफरा, और आनाह (पेट फूलना) उत्पन्न होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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