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भेषजकपद्रवचिकित्साधिकारः ः ।
( ६३३ )
भादार्थः -- प्रियंगु, मोथा, सुगंधवाला, मंजीठ, पिष्टका इन के कषाय व कल्क के साथ बकरी के दूध को मिलाकर तैयार किया हुआ बस्ति सांग्राहिक बस्ति कहलाता है जो कि मल को रोकता है ॥ १६९ ॥
वंध्यत्वनाशक बस्ति.
यद्धलाशतविपक्कसुतैलस्नेहवस्तिरनपत्यनराणाम् ।
थोषितां च विहितस्तु सुपुत्रानुत्तमानतितरां विदधाति ॥ १६२ ॥ भावार्थः—खरैटी के क्वाथ, कल्क से सौ बार ( शतपाकविधान से ) पकाये हुए तैसे [ बला तैल से ] संतानरहित स्त्री पुरुषों को ( जिनको कि स्नेहन स्वेदन, वमन विरेचन से संस्कृत किया है ) स्नेह बस्ति का प्रयोग करें तो, उन को अत्यंत उत्तम, अनेक पुत्र उत्पन्न होते हैं ।। १६२ ॥
गुडतैलिक बस्ति.
भूपतिप्रवरभूपसमान- द्रव्यतस्स्थविरबालमृदूनाम् ।
योषितां विषमदोषहरार्थं वक्ष्यतेऽत्र गुडतैलविधानम् ॥ १६३ ॥
भावार्थ:- राजा, राजा के समान रहनेवाले बडे आदमी, अत्यंत वृद्ध, बालक सुकुमार व स्त्रियां जिनको कि अपने स्वभाव से उपरोक्त बस्तिकर्म सहन नहीं हो सकता है, उन के अत्यंत भयंकर दोषों को निकालने के लिये अब गुड तैलका विधान कहेंगे, जिस से सरलतया उपरोक्त बस्तिकर्म सदृश ही चिकित्सा होगी ॥ १६३॥ गुडतैलिक स्तिमें विशेषता.
अन्नपानशयनासनभोगे नास्ति तस्य परिहारविधानम् ।
यत्र चेच्छति तदैव विधेयम् गौडतैलिकमिदं फलवच्च ॥ १६४ ॥
भावार्थ:- इस गुडतैलिक बस्ति के प्रयोग काल में अन्न, पान, शयन, आसन मैथुन इत्यादिक के बारे में किसी प्रकार की परहेज करने की जरूरत नहीं है अर्थात् सब तरह के आहार, विहार को सेवन करते हुए भी बस्तिग्रहण कर सकता है । उसी प्रकार इसे जिस देश में, जब चाहे प्रयोग कर सकते हैं ( इसे किसी भी देशकाल में भी प्रयोग कर सकते हैं ) । एवं इस का फल भी अधिक है ।। १६४ ॥
गुडतैलिकवस्ति.
गौडतैलिकमितीह गुडं तैलं समं भवति यत्र निरूहे । चित्रबीजतरुमूलकषायैः संयुतो विषमदोषहरस्स्यात् ॥ १६५ ॥
१ इस का विधान पहिले कह चुके हैं ।
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