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कल्याणकारके
.... भावार्थ:-जिस निरूह बस्ति में गुड, और तैल समान प्रमाण में डाला जाता है उसे गुडतैलिक बस्ति कहते हैं। इस को [ गुड तैल को ] एरंडी के जड के काय के साथ मिलाकर प्रयोग करने से सर्व विषम दोष दूर हो जाते हैं ।। १६५॥
युक्तरथ बस्ति. तद्गुडं तिलजमेव समान तत्कषायसहितं जटिला च । पिप्पलीमदनसैंधवयुक्तं बस्तिरेष वसुयुक्तरथाख्यः ॥ १६६ ॥
भावार्थ:--गुड, तिल का तैल समान भाग लेकर इस में एरंडी के जड का काढा मिलावें । इस में वच, पीपल, मेनफल, व सेंधानमक इन के कल्क मिलाकर बस्ति देवें इस बस्ति को वसुयुक्तरथ. ( युक्तरथ ) बस्ति कहते हैं ॥ १६६ ॥
शूलनबस्ति. देवदारुशतपुष्पसुरास्ना हिंगुसैंधवगुडं तिल च । चित्रवीजतरुमूलकषायैबस्तिस्यतरशूलकुलघ्नम् ॥ १६७॥
भावार्थ:- देवदारु, सौंफ, राना, हींग, सेंधानमक, इन के कल्क, गुड, तिल व एरंडी के जड का काढा, इन सब को मिलाकर बरित देने से भयंकर शूल नाश होता है । इसे शलघ्न बस्ति कहते हैं ॥ १६७ ॥
सिद्धवस्ति. कोलसद्यवकुलत्थरसाढ्यः पिप्पलीमधुकसैंधवयुक्तः । जीर्णसद्गुडतिलोद्भवमिश्रः सिद्धबस्तिरिति सिद्ध फलोऽयम् ॥ १६८ ॥
भावार्थ:-बेर, जौ, कुलथी इन के काढे में पीपल, मुलैठी व सेंधानमक के कल्क, और पुरानी गुड व तिल्ली का तेल मिलाकर बस्ति देवें। इसे सिद्धबरित कहते हैं। यह कस्ति अव्यर्थ फलदायक है ॥ १६८ ॥
:: गुडतैलिक वस्ति के उपसंहार. इति पुराणगुडैस्सतिलोद्भवैस्समधृतैः कथितद्रवसंयुतैः। सुविहितं कुरु बस्तिमनेकदा विविधदोषहरं विविधौषधैः ॥ १६९ ॥
भावार्थ:--समान भाग में लिये गये, गुड व तेल, पूर्वोक्त द्रव [ एरंडी का काढा] व नानाप्रकार के औषध [गुड तैलिक ] इन से मिला हुआ [अथवा इन से सिद्ध ]
१ गुड और तैल इन दोनों के बराबर कषाय लेना चाहिये । २ "तिलज" इतिपाठांतर ३ इसे अन्य ग्रंथो में " दोषहरवास्ति" कहा है ।
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