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बस्तयः प्रशार
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(६३२)
- कल्याणकारके
बृंहण बस्ति अश्वगंधवरवज्रलतामापाद्य शेषमधुरौषधयुक्ताः ।
वस्तयः प्रकटबृहणसंज्ञाः माहिषोरुदधिदुग्धघृताठ्याः ॥ १५७ ॥ भावार्थ:-असगंध,[शतवरी] वज्रलता आदि बृंहण औषधियों के काथ में मधुर औषधियों के कल्क को मिलाकर भैंस की दही दूध च धीसाहत जो बस्ति दी जाती हैं उन्हे बृहणबत्ति कहते हैं जिन से शरीर के धातु व उपधातुवों की वृद्धि होती है। १५७॥
शमनबस्ति. क्षीरवृक्षमधुरोषधशीतद्रव्यतोयवरकल्कसमेताः।
बस्तयः प्रशमनकविशेषाः शर्करेक्षुरसदुग्धघृताक्ताः ॥१५८॥ भावार्थ:-~~दूधियावृक्ष, मधुर औषध वर्ग, व शीतल गुणयुक्त औषध, इन के काथ में इन की औषधि यों के कल्क, व शक्कर, ईख का रस, दूध, घी मिलाकर तैयार की हुई बरित प्रशमनबस्ति कहलाती है, जो शरीरगत दोषों को उपशम करती है ॥१५८॥
वाजीकरण बस्ति. उच्चटेक्षुरकगोक्षुरयष्टीमाषगुप्ताफलकल्ककपायैः । — संयुता घृतसिताधिकदुग्धैर्बस्तयः प्रवरवृष्यकरास्ते ॥ १५९॥
भावार्थः-उटंगन के बीज, तालमखाना, गोखरू, ज्येष्ठमध,माष( उडद ) कौंच के बीज इन के कषाय में इन ही के कल्क, घी, शक्कर व दूध को मिलाकर तैयार की हुई बस्ति वृष्यबस्ति कहलाती है जो पुरुषोंको परमबलदायक ( वाजीकरणकर्ता ) है ॥१५९॥
पिच्छिल बस्ति. शेलुशाल्मलिविदारिवदर्यैरावतीप्रभृतिपिच्छिलवगैः ।
पक्कतोयघृतदुग्धसुकल्कैबस्तयो विहितपिच्छिलसंज्ञाः ॥ १६० ॥ भावार्थ:--लिसोडा, सेमल, विदारीकंद, बेर, नागबला आदिक़ पिच्छिल औषधि वर्ग, इनसे पकाया हुआ जल [ काथ ] घी, दूध व कल्कों से तैयार की हुई बस्तियोंको पिच्छिलबस्ति कहते हैं ॥ १६० ॥
____ संग्रहण बस्ति , सत्मियंगुधनवारिसमंगापिष्टकाकृतकषायमुकल्कैः। छागदुग्धयुतवस्तिगणास्सांग्राहिकारसततमेव निरुक्ताः ॥ १६१ ॥
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