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कर्मचिकित्साधिकारः ।
( ५७५)
" सावरिका" कहते हैं । इसका उपयोग, हाथी घोडा आदि तियच प्राणियों के रक्त निकालने में किया जाता है । ये मनुष्यों के उपयोग में नहीं आते ॥ ४२ ॥
जौकोंके रहने का स्थान. तासां सन्मलये सपाण्डुविषये सह्याचलादित्यके । . कावतिरलांतरालनिचये वेंगीकलिंगत्रये ॥ पोद्रेऽपि विशेषतः प्रचुरता तत्रातिकायाशनाः ।
पायिन्यस्त्वरितन निर्विषजलूकास्स्युः ततस्ताः हरेत् ॥ ४३ ॥ भावार्थ:- मलय देश, पांड्यदेश, सह्याचल, आदित्याचल के तट, कावेरी नदी के बीच, बंग देश, त्रिकलिंग देश अथवा तीन प्रकार के कलिंग देश, पुंड्रदेश और इंद्रदेश में विशेषकर ये जोंक अधिप्रमाण में रहते हैं । वहां के जोंक स्थूल शरीरवाले, अधिकखामेवाले व शीघ्र ही पीनेवाले, और निर्विष होते हैं। इसलिये इन देशों से उन को संग्रह करना चाहिये ॥ ४३ ॥
औंक पालनविधि. हुत्वा ताः परिपोषयेनवघटे न्यस्य प्रशस्तांदके-- ।. रापूर्णे तु सवले सरसिजव्यामिश्रपत्रांकिते ॥ शीते शीतलकामृणालसहिते दत्वा जलाद्याहृति ।
नित्य सप्तदिनांतरे घटमतस्सकामयन् सततम् ॥ ४४ ॥ भावार्थ:-उन जलोकों को यत्नपूर्वक पकड कर एक नये घडे में सरोवर के स्वच्छपानी, शीतल बोल, कमल, कमलपत्र, उसी तलाब के कीचड, व कभैलनाल को डाल कर उस में उन जोंकों को डाल दें । प्रतिदिन पानी व आहार देवें, एवं सात सात दिन में एक दफे उस घडे को बदलते रहना चाहिये । इस प्रकार उन जोंकोंका पोषण करना चाहिये ॥ ४४ ॥
जलोकप्रयोग.
यस्स्यादविमोक्षसाध्यविविधव्याध्यातुरस्तं भिषक् । संवीक्ष्योपनिवेश्य शीतसमये शीतद्रवाहारिणः ॥ .
१ यह उन को लाने के लिये.
२-३ ये उन को सोने के लिये।
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