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________________ ( ५७१) कल्याणकारके ARAAAAnnnnnnot • लाक्षासद्रसपिष्टहिंगुलविलिप्तेवात्मपादिरैः। वक्त्रे या कपिला स्वयं च कपिला नाम्ना तु मुद्गापमा ॥ ४० ॥ भावार्थः ---इस प्रकार विषमय जलूफावोंका वर्णन किया गया। अब निार्वेष जकात्रोंके जो छह भेद हैं उन को उन के लक्षणकथनपूर्वक कहेंगे । जिसके दोनों पार्श्व व उदर लाखके रस से पिसे हुए हिंगुल से लिप्त जैसे लाल मालुम होते हैं, जिस का मुख भूरे [ कपिल ] वर्णका है, और मूंगके वर्ण के समान जिसके पीठ का वर्ण है वह " कपिला" नामक जर्क है ॥ ४०॥ पिंगलामूषिकाशकुमुखीलक्षण. आरक्तातिसुवृत्तपिंगलतनुः पिंगानना पिंगला। या घंटाकृतिमूषिकाप्रभवपुर्गधा च सा मूषिका ॥ या शीघ्रं पिबतीह शीघ्रगमना दीर्घातितीक्ष्णानना । सा स्याच्छङ्कुमुखी यकृन्निभतनुर्वर्णन गंधेन च ॥ ४१ ॥ भावार्थ:-जो गोल आकार से युक्त होकर लाल व पिंगल वर्णके शरीर व भूरे [ पिङ्गल ] वर्णके मुखको धारण करता है उसे " पिंगला" नामक जलौक कहते हैं । जो घंटाके आकार में रहता है और जिसके शरीरका वर्ण व गंध चूहके समान है, उसे " मूषिका" नामक जलौक कहा है । जो रक्त वगैरह को जल्दी २ पीता है व जल्दी ही चलता है जिसका मुख दीर्घ व तीक्ष्ण है उसे "शंङ्कमुखी" जलौक कहते हैं । इसके शरीर का वर्ण व गंध, यकृत् [ जिगर ] के गंधवर्ण के समान है ।। ४१ ।। पुंडरीकमुखीसावरिकालक्षण. या रक्तांबुजसन्निभोदरमुखी मुद्गोपमा पृष्ठतः । सैव स्यादिह पुण्डरीकवदना नाम्ना स्वरूपेण च ।। या अष्टादशभिम्तयांगुलिभिरित्यवायता समिता । । श्यामा सावरिकेति विश्रुतगुणा सा स्यात्तिरश्चामिह ॥ ४२ ॥ भावार्थ:--- जिसका उदर व मुख लाल कमल के समान है, पीठ मंगके समान वर्णयुक्त है, उसे नाम व स्वरूप से " पुण्डरीकमुखी' कहा है । जो अठारह अंगुलप्रमाण लम्बी है, काली है, जिसके गुण विश्व में प्रसिद्ध हैं, ऐसी जलूका को १ पृष्ठे स्निग्धमद्वर्णा कपिला ( ग्रंथांतरे ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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