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कल्याणकारके
भावार्थः---जिन का जल ही ओक (घर) है । इसलिये जोंकों को "जलौकस" कहते हैं । जिन का जल ही आयु है इसलिये " जलायुका" कहते हैं । एवं इन्हे जलू का भी कहते हैं। ये जोंकवाचक शब्द पृषोदरादि गण से साधित होते हैं ऐसा व्याकरणशास्त्रज्ञोंका मत है । जोंक बारह प्रकार के होते हैं। उन में छह तो सविष होते हैं । ये अत्यंत कष्ट देनेवाले होते हैं; बाकी के छह निर्विष होते हैं । कृष्णा, कबुरा अलगर्दा, इंद्रायु, सामुद्रिका, गोचंदना ये छह विषयुक्त जोंको के भेद हैं । कपिला पिङ्गला, शङ्कमुखी, मूषिका, पुंडरीकमुखी, सावरिका ये छह निर्विष जोंकों के भेद हैं। आगे इन का लक्षणकथन किया जायगा, जिसपर पाठक दृष्टिपात करें ॥ ३५ ॥
सविषनलौकाके लक्षण.
कृष्णाकुवुरलक्षण. या तत्रांजनपुंजमेचकनिभा स्थूलोत्तमांगान्विता । कृष्णाख्या तु जलायुका च सविषा वा जलूकार्तिभिः ॥ निम्नोत्तुंगनिजायतोदरयुता वाख्यमत्स्योपमा ।
श्यामा कर्बुरनामिका विषमयी निंद्या मुनींद्रस्सदा ॥ ३६ ॥ .... भावार्थः -जो जलूका अंजन ( काजल ) के पुंज के समान काले वर्णकी हो, जिसका मस्तक स्थूल हो, उसे" कृष्णा" नामक जलूका कहते हैं । जो निम्नोन्नत लंबे पेटसे युक्त हो और धर्मि नामक मछली के समान हो, श्यामवर्णसे युक्त हो उसे
कर्बुर " नामक जलौंक कहते हैं । ये दोनों जौंक विषयुक्त हैं । इसलिये ये जौंक लगाकर रक्त निकालने के कार्य में वर्जित हैं व निंद्य हैं ऐसा मुनींद्रो वा मत है ॥३६॥
अलगर्दा, इंद्रायुधा, सामुद्रिकालक्षण. । रोमव्याप्तमहातिकृष्णवदना नाम्नालगापि सा ।
सांध्या शक्रधनुःप्रभेव रचिता रेखाभिरिंद्रायुधा ॥ वा तीव्र विषापरेषदसिता पीता च भासा तथा ।
पुष्पैश्चित्रविधैर्विचित्रितवपुः कष्टा हि सामुद्रिका ॥ ३७ ॥ भावार्थ:-जिसके शरीरमें रोम भरा हुआ है व जिसका मुग्व बडा व अत्यंत कला है, उसे " अलगर्दा" नामक जटूक कहते हैं । जो संध्या समय के इंद्रधनुष्य के समान
१ यह मछली मर्प के आकाग्वाली है।
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