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________________ शास्त्रसंग्रहाधिकारः । ( ५५५ ) रभृत्य. ७ वाजीकरण तंत्र व ८ रसायनतंत्र. ये आयुर्वेद के आठ अंग हैं । इन आठों अंगों को उपरोक्त आचार्यों ने अपने २ ग्रंथो में विशेषरीति से वर्णन किया है यह पिंडार्थ है ॥ ८५ ॥ अष्टांग के प्रतिपादक स्वामी समंतभद्र अष्टांगमप्यखिलमत्र समंतभद्रेः प्रांक्तं सविस्तरवचोविभवैर्विशेषात् । संक्षेपता निगदितं तदिहात्मशक्त्या कल्याणकारकमशेषपदार्थयुक्तम् ॥ भावार्थ:- प्रातःस्मरणीय भगवान् समंतभद्राचार्यने तो, पूर्वोक्त आठों अंगों को पूर्ण रूप से, बडे विस्तार के प्रतिपादन किया है अर्थात् आठों अंगो को विस्तार के साथ प्रतिपादन करनेवाले एक महान् ग्रंथ की रचना की है । उन आठों अंगों को इस कल्याणकारक नामके ग्रंथमें अपने शक्तिके अनुसार, संक्षपसे हम [ उग्रादित्याचार्य ] ने प्रतिपादन किया है ॥ ८६ ॥ ग्रंथनिर्माणका स्थान. वेंगीषत्रिक लिंगदेशजननप्रस्तुत्य सानूत्कट | प्रोद्यद्वक्षलताविताननिरते सिद्धैस्स विद्याधरैः ॥ सर्वैर्मदरकन्दरोपमगुहाचैत्यालयालंकृते । रम्ये रामगिरौ मया विरचितं शास्त्रं हितं प्राणिनाम् ॥ ८७ ॥ भावार्थ:- कलिंग देशमें उत्पन्न सुंदर सानु ( पर्वत के एक सम भूभाग प्रदेश ) मनोहर वृक्ष व लतावितान से सुशोभित, विद्याओंसे सिद्ध विद्याधरोंसे संयुक्त, मंदराचल [मेरु पर्वत ] के सुंदर गुफाओं के समान रहनेवाले, मनोहर गुफा व चैत्यालयों (मंदिर) से अलकृंत, रमणीक रामगिरि में प्राणियों के हितकारक, इस शास्त्र की हमने ( उग्रादित्याचार्य ) रचना की है ॥ ८७ ॥ ग्रंथकर्ताका उद्देश. Jain Education International न चात्मयशसे विनोदननिमित्ततो वापिस - । त्कवित्वनिजगर्वतो न च जनानुरागाशया- ॥ त्कृतं प्रथितशास्त्रमेतदुरुजैन सिद्धांतमि- । त्यहर्निशमनुस्मराम्यखिलकर्मनिर्मूलनम् ॥ ८८ ॥ भावार्थ:- हमने कीर्ति की लोलुपता से वा विनोद के लिये अथवा अपने For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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