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शास्त्रसंग्रहाधिकारः ।
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कालांतर में प्राणघात करनेवाले हैं। तीन मर्म विशल्यन हैं। अडतालीस भर्म वैकल्यकारक हैं । आठ मर्भ रुजाकर हैं। इस प्रकार कुल १०७ मर्म स्थानोंका कथन किया गया है ॥ ८१ ॥
पक्षान्मर्माभिघातक्षतयुतमनुजा वेदनाभिम्रियते । सद्वैद्यप्रोक्तयुक्ताचरणविविधभैषज्यवगैः कदाचित् ॥ जीवतोप्यंगहीना बधिरचलशिरस्कन्धमूकोन्मदभ्रा-1
न्तोदृत्ताक्षा भवंति स्वरविकलतया मन्मना गद्दाश्च ।। ८२ ॥ भावार्थ:-- मर्मस्थानों में आघात पहुंचने से उत्पन्न जख्मसे पीडित मनुष्य, उस की प्रबल वेदना से, प्रायः एक पक्ष [पंद्रह दिन के अंदर मर जाते हैं। कदाचित् उत्तम वैद्य के द्वारा कहे गये, योग्य आचरणों को बराबर पालन करने से व नानाप्रकार के औषधों के प्रयोग से बच भी जाय, तो भी वह, अंगहीन, बहरा, कांपते हुए शिर व कंधों से युक्त, मूक, पागल, भ्रांत, ऊर्चनेत्रवाला, स्वरहीन अथवा मनमन, गद्गद स्वरवाला होकर जीता है ।। ८२ ।।
मर्मवर्णन के उपसंहार. मर्मागुष्ठसमप्रमाणमखिलैस्यामयैर्वा क्षत- । रन्ते विद्धामिहापि मध्यमहतं पार्थाभिसंघट्टितम् ॥ तत्तत्स्थानविशेषतः प्रकुरुते स्वात्मानुरूपं फलं ।
तद्व्याद्भिपगत्र मोहमपनीयाप्तोपदिष्टागमात् ।। ८३ ॥ भावार्थ:-मर्मों के प्रमाण अंगुष्ट [अंगल ] के बराबर है अर्थात् कुछ म एक अंगुल प्रमाण है कुछ दो, कुछ तीन । सम्पूर्ण भयंकर रोग व कोई चोट से, मर्मोका अंत प्रदेश मध्यप्रदेश या पार्श्वप्रदेश पीडित हो, तो उन उन विशिष्ट स्थानों के अनुकूल फल (परिणाम ) भी होता है। जैसे सधःप्राणहर मर्म के अंत प्रदेश विधजाय, तो वह [ तत्काल प्राणनाश करनेवाला भी ] क.लांतर में मारता है । कालांतर में मारक मर्म का
१ऊर्वी, कूर्चशिर, विटप और कक्षधर ये मर्म एक एक अंगुल प्रमाणके हैं । स्तनमूल, मणिबंध गुल्फ ये मर्म दो अंगुल प्रमाणवाले हैं । जानु और कूर्पर तीन २ अंगुल प्रमाणवाले हैं | हृदय बास्त, कूर्च, गुदा, नाभि और शिर के चार मर्म, शृंगाटक और कपाल के पांच मर्म, एवं गले के दश मर्म, ८ मातृका, दो नीला, दो मन्या ये सब चार चार अंगुल प्रमाण के हैं। इनको छोडकरके जो मर्मस्थान बच जाते हैं वे सब अद्धांगुल प्रमाण के हैं।
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