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:: कल्याणकारके
वक्षो मर्मतलेंद्रयस्तिसहितं क्षिप्राणि सीमंतकैः ।
पार्श्व संधियुगं बृहत्यपि तथा घ्नत्येव कालांतरात् ॥ ७८ ॥ भावार्थः-८कंठ की शिरा, १ गुदा, १हृदय, १ बस्ति, १ नाभि, १ अधिपति, २ शंख, ४ शृंगाटक, ये १९ मर्म सद्यः प्राणहर हैं। अर्थात् इन में आघात पहुंचनेपर, तत्काल मृत्यु होती है । ८ वक्षस्थल [ छाती ] के मर्म, ४ तलहृदय, ४ इंद्बस्ति, ४ क्षिप्र, ५ सीमंत, २ पार्श्वसंधि, २ बृहती, ये २९ मर्म कालांतर प्राणघातक है [ इन में आघात पहुंचने से, कुछ समय के बाद मरण होता है ] ।। ७८ ॥
विशल्यन वैकल्यकर व रुजाकरमर्म. उत्क्षेपः स्थपनी च मर्म सुविशल्यघ्नान्यतः प्राणिनां । मानूी विटपोक्तकक्षधरकूर्चापांगनीला क्रक-॥ न्यांसावर्त कुकुंदुरांस फलकोद्यल्लोहिताक्षाणिभि- । मन्याभ्यां सफणे नितंबविधुरे तत्कपराभ्यां सह ॥ ७९ ॥ क्रकाटिकाभ्यां तरुणेच मर्मणी भवंति वैकल्यकराणि कारणैः।
सकर्चशीर्षामाणिबंधगुल्फको रुजाकराण्यष्टविधानि देहिनाम् ।।८०॥ ___ भावार्थ:--१ उत्क्षेपक १ स्थपनी, थे. मर्म विशल्यन हैं । अर्थात् घुसा हुआ. शल्य निकलते ही प्राण का घात कर देते हैं। २ जानु, ४ उर्वी, २ विटप, २ कक्षधर , ४. कूर्च, २ अपांग, २ नीला, २ ऋकन्यांसक ( अंस) २ आवर्त, २ कुकुंदर, २ अंस-: फलक, ४ लोहिताक्ष, ४ आणि, २ मन्या, २ फण, २ नितम्ब, २ विधुर, २ कूर, .. २. कृकाटिक, २ कटीकतरुण, ये ४८ मर्म, वैकल्यकर हैं । अर्थात् इन में चोट लगने से. अंगों की विकलता होती है । ४ हाथ पैरों के कूर्चशिर, २ मणिबंध, २ गुल्फ ये आठ मर्म रुजाकर हैं अर्थात् इन में आघात पहुंचने से मनुष्योंको अत्यंत पीडा अथवा कष्ट . होता है.॥ ७९ ॥ ८० ॥ :
माकी संख्या सद्यः माणहराणि तान्य मुभृतामेकोनसविंशतिः । कालात्विशदिहेकहीनविधिना त्रीण्येव शल्योद्मात् ॥ चत्वारिशदिहाष्टकोत्तरयुतं वैकल्यमस्यावहे- ।
दष्टावेव रुनाकरााणि सततं माणि संख्यानतः ॥ ८१ ॥ भावार्थ:-इस प्रकार उन्नसि मर्म सद्यः प्राणहरनेवाले हैं। उनतीस मर्म,
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