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________________ (५३४) कल्याणकारके भाग शेष रहने पर उतार कर छान लेवे ऐसा श्रुतकीर्ति व कुमारनंदि मुनि कहते हैं । लेकिन् पुरातन वीरसेन आदि मुनिपुंगव द्रव्य से चतुर्गुण जल डालकर, सोलहवां भाग शेष रखना चाहिये ऐसा कहते हैं ॥ २३ ॥ ___ स्नेहपाकविधिः द्रव्याच्चतुर्गुणांभसि विपककषायविशेष-। पादशेषिवतदर्धदुग्धसहिते च तदर्धघृते घृतस्य ॥ पादौषधकल्कयुक्तमखिलं परिपाच्य घृतावशेषितं । तहरपूज्यपादकथितं तिलजादिविपाकलक्षणम् ॥ २४ ॥ ___ भावार्थः-औषधद्रव्य को चतुर्गुण जल में पकावें । उस कषाय को चौथाई हिस्से में ठहरावें, उस से अर्धभाग दूध, अर्धभाग घी (स्नेह ) दूध व घी से [ स्नेह ] चौथाई भाग औषधकल्क । इन सब को एकत्रा पकाकर घृत के अंश अवशेष रहने पर उतारलें । यह पूज्यपाद आचार्य के द्वारा कहा हुआ स्नेहपाक का लक्षण व विधान है ॥ २४ ॥ स्नेहपाकका त्रिविधभेद प्रोक्तघृतादिषु प्रविहिताखिलपाकविधिविशेषिते । । ष्वेषु समस्तमरिमतभंदविकल्पकृतः प्रशस्यते ॥ . . पाकमिह त्रिधा प्रकटयंति मृदुं वरचिक्कणं खरा-। युज्वलचिक्कणं च निजनामगुणैरपि शास्त्रवेदिनः ॥ २५ ॥ भावार्थ:-उपर्युक्त प्रकार घृत आदि के पाक के विषय में जो आचार्यों के परस्पर मतभेद पाया जाता है, वे सर्व प्रकार के विभिन्न मत भी हमें मान्य है। स्नेह पाक तीनप्रकार से विभक्त है । एक मृदुपाक, दूसरा चिक्कणपाक, तीसरा खरचिक्कण पाक, इस प्रकार अपने नाम के अनुसार गुण रखनेवाले तीन पाकों को शास्त्रज्ञोनें कहा है ॥ २५॥ मृदुचिक्कणखरचिक्कणपाकलक्षण. स्नेहवरौषधाधिकविवेकगुणं मृदुपाकमादिशेत् । स्नेहविविक्तकल्कबहुपिच्छिलतो भवतीह चिक्कणं ॥ कल्कमिहांगुलिद्वय विमर्दनतः सहसैव वर्तुली-। भूतमवेक्ष्य तं खरसुचिक्कणमाहुरतोतिदग्धता ॥ २६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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