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शास्त्रसंग्रहाधिकारः।
(५३३)
ग्रासग्रासांतर लक्षण. ग्रासगत विचूर्णमबलाग्निषु दीपनबृंहणादिकं । ग्रासगणांतरेषु वमनौषधधृमगणान् सकासनि-॥ श्वासिषु तत्पशांतिकरभेषजसाधितसिद्धयोगले
हानपि योजयदिति दशौषधकालविचारणक्रमात् ॥ २१ ॥ भावार्थ:-ग्रास उसे कहते हैं जो कवल के साथ, मिलाकर उपयोग करें । जिन के अग्नि दुर्बल हो जो क्षीणशुक्र व दुर्बल हो उन्हे दीपन, बृंहण, वाजीकरण औषधिसिद्ध चूर्ण को ग्रास के साथ उपयोग करना चाहिये। ग्रासांतर उसे कहते हैं जो ग्रासों [ कवल ] के बीच ( दोनों ग्रासी के मध्य ) में सेवन किया जावे । ग्रास श्वासपीडितों को, वमनौषध सिद्ध वमनकारक धूम व कालादिकों को शांत करनेवाले औषधियों से अवलेहों को ग्रासांतर में प्रयोग करना चाहिये । इस प्रकार क्रमशः दस' औषध काल का वर्णन हुआ ॥ २१ ॥
स्नेहपाकादिवर्णनप्रतिज्ञा. स्नेहविपाकलक्षणमतः परमूर्जितमुच्यतेऽधुना-। चार्यमतैः प्रमाणमपि कल्ककषायविचूर्णतैलस ॥ पि:प्रकरावलेहनगणेष्वतियोगमयोगसाधुयो- ।
गानिजलक्षणैरखिलशास्त्रफलं सकलं ब्रवीम्यहं ॥ २२ ॥ भावार्थ:-यहां से आगे स्नेहपाक (तैल पकाने ) का लक्षण, कल्क, कषाय, चूर्ण, तैल, घृत, अवलेह इन के प्रमाण, अतियोग, अयोग व साधुयोग के लक्षण, सम्पूर्ण शास्त्रके फल आदि सभी विषय को पूर्वाचार्यों के मतानुसार इस प्रकरण में वर्णन करेंगे ॥ २२ ॥
क्वाथपाकविधि. द्रव्यगुणाञ्चतुर्गुणजलं परिषिच्य विपक-। मष्टभागमवशिष्टमपरैः श्रुतकीर्तिकुमारनंदिभिः ।। षोडशभागशेषितमनुक्तघृतादिषु वीरसेनमू-।
रिप्रमुखैः कपायपरिपाकविधिविहितःपुरातनः ॥ २३ ।। भावार्थः--जहां घृत आदि के पाक में कपाय पाक का विधान नहीं लिखा हो, ऐसे स्थानो में औपध द्रव्य से चतुर्गुण [ चौगुना ] जल डाल कर पकायें। आठवां
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