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________________ ( ५३२) कल्याणकारके हा पचानेवाला व सुखकारक होता है। ऊर्ध्वभक्त उसे कहते हैं जो भोजन के पश्चात् खाया पीया जावे, यह भोजन कर के पीछे खाया पीया हुआ औषध, २.रीर के ऊर्ध्व भाग स्थित सर्वरोगों को दूर करता है । मध्यभक्त उसे कहते हैं जो भोजन के बीच में सेवन किया जावे । यह भोजन के मध्य में दिया हुआ औषध, शरीर के मध्यगत समस्त रोगों को नाश करता है। विज्ञ वैद्य को उचित है उपरोक्त प्रकार व्याधि आदि को विचार करते हुए औषधप्रयोग करें ॥ १८ ॥ अंतरभक्तसभक्तलक्षण. अंतरभक्तमौषधमथानिकरं परिपीयते तथा । मध्यगते दिनस्य नियतोभयकालमुभोजनांतरे ॥ औषधरोषिबालकृशवृद्धजने सहसिद्धमौषधै-। यमिहाशनं तद्वदितं स्वगुणैश्च सभक्तनामकं ॥ १९ ॥ भावार्थ:--अंतरभक्त उसे कहते हैं जो सुबह शाम के नियत भोजन के बीच ऐसे दिन के मध्यसमय में सेवन किया जाता है। यह अंतराभक्त अग्नि को अत्यंत दीपन करनेवाला, [ हृदय मनको शक्ति देनेवाला पथ्य ] होता है । जो औषधों से साधित [ काथ अदि से तैयार किया गया या भोजन के साथ पकाया हुआ ] आहार का उपयोग किया जाता है उसे सभक्त कहते हैं। इसे औषधद्वेषियोंको [ दवा से नफरत करनेवालों को] व बालक, कृश, वृद्ध, स्त्रीजनों को देना चाहिये ॥ १९ ॥ सामुद्गमुहुर्मुहुलक्षण. ऊर्ध्वमधःस्वदोषगणकोपवशादुपयुज्यते स्वसामुद्गविशेषभेषजमिहाशनतः प्रथमावसानयोः॥ श्वासविशेषबहुहिकिषु तीव्रतरप्रतीतसो-। द्गारिषु भेषजान्यसकृदन मुहुर्मुहुरित्युदीरितं ॥ २० ॥ भावार्थ:-जो औषध भोजन के पहले व पछि सेवन किया जावे उसे सामुद्ग कहते हैं । यह ऊपर व नीचे के भाग में प्रकुपित दोषों को शांत करता है। श्वास, तीब्रहिका, [ हिचकी ] तीव्र उद्गार (ढकार ) आदि रोगों में जो औषध [ भोजन कर के या न करके ] बार बार उपयोग किया जाता है उसे मुहर्मुह कहते हैं ॥ २० ॥ १ इसे ग्रंथांतरो में "अधोभक्त" के नामसे कहा है। लेकिन दोनों का अभिपाय एक ही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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