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विषरोगाधिकारः ।
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सर्वविषारि अगद. पाठाहिंगुफलत्रयं त्रिकटुकं वक्राजमोदाग्निकं । सिंधूत्थं सविडं विडंगसहितं सौवर्चलं चूर्णितम् ॥ सर्व गव्यघृतेन मिश्रितमिदं श्रृंगे निधाय स्थितं ।
सर्वाण्येव विषाणि नाशयति तत् सर्वात्मना योजितम् ॥ ११८ ॥ भावार्थ:-पाढ, हींग, त्रिफला, त्रिकुटु, पित्त पापडा, अजवाईन, चित्रक, सेंधालोण, विउनमक, बायाविडंग ब कालानोन इन सब को अच्छीतरह चूर्ण कर गाय के घृतके साथ मिलायें एवं सींग में रखें । तदनंतर इसका उपयोग नस्य, अंजन, लेपन आदि सर्व कार्यों में करने से सर्वप्रकार के विष नाश को प्राप्त होते हैं ॥ ११८ ॥
द्वितीय सर्वविषारि अगद. स्थौणेयं सुरदारुचंदनयुगं शिगुद्वयं मुग्गुलं । तालीस सकुटं नरं कुटजमुग्रार्कानिसौवर्चल ॥ कुष्ठं सत्कटुरोहिणीत्रिकटुकं संचूर्ण्य संस्थापितम् ।
गोश्रृंगे समपंचगव्यसहितं सर्व विषं साधयेत् ॥ ११९॥ भावार्थ:-थुनियार, देवदारु, रक्तचंदन, श्वतेचंदन, लाल सेंजिन, सफेद संजन, दुग्मुल, तालीस पत्र, आलुवृक्ष, कुडा, अजवायन, अकौवा, चित्राक, कालानोन, कुछ,, कुटकी, त्रिकटुक, इन सब को अच्छीतरह चूर्ण कर पंचगव्यके साथ मिलाकर गाय के सौंग में रखें। फिर इसका उपयोग करने पर सर्व प्रकार के विष दूर होते हैं ॥११९
तृतीयसविषारि अगद. तालीसं बहुलं चिडंगसहितं कुष्ठं विडं सैधवं । भाङ्गी हिंगुमृगादनीसकिनिहिं पागं पटोलां वां ॥ पुष्पाण्यर्ककरंजवज्रसुरसा भल्लातकांकोलजा
न्याचूाजपयोघृतांबुसहितान्येतद्रं निगहेत् ॥ १२ ॥ भावार्थ:-तालीस पत्र, बडी इलायची, वायाविडंग, कूठ, विडनोन, सेंधालोण, भारंगा, हींग, इंद्रायण, चिरचिरा, पाढ, पटोलपत्र, बचा, अर्कपुष्प, भिलावेका फूल, एवं अंकाप इन सब को अच्छी तरह चूर्ण कर बकरी के दूध, घृत व मूत्र के साथ मिलाकर पूर्वोक्त प्रकार से उपयोग करें तो यह विष को नाश करता है ।। १२० ॥
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