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________________ ( VII ) - J س or irr १३३ ४ سد 00 १२४ । १३७ वातदोष प्राणवात उदानवायु समानवायु अपानवायु व्यानवायु १२५ कुपितवात व रोगोत्पत्ति १२५ कफ पित्त रक्तयुक्त वातका लक्षण १२५ वातव्याधि के भेद १२६ अपतानकरोगका लक्षण १२६ अदितनिदान व लक्षण १२६ अर्दितकाअसाध्य लक्षण व पक्षाघातकी समाप्ति व लक्षण १२७ पक्षघातका कृछताध्य व . असाध्य लक्षण १२७ अपतानक व आक्षेपको असाध्य ___ लक्षण १२७ दण्डापतानक, धनुस्तंभ, बहिरायामअंतरायामकी संप्राप्ति व लक्षण १२८ गृध्रसी अवबाहुकी संप्राप्ति व लक्षण १२८ कलायखंज, पंगु, उरुस्तंभ वातकंटक व पादहर्षके लक्षण १२८ तूनी, प्रतितूनी, अष्टीला व आत्मान के लक्षण १२९ वातव्याधिका उपसंहार १३० वातरक्तका निदान, संप्राप्ति व लक्षण१३१ पित्तकफयुक्त व त्रिदोषज वातरक्तका ___ लक्षण १३१ क्रोष्टुकशीर्षलक्षण वातरक्त असाध्य लक्षण १३२ वातरोगचिकित्सा वर्णनकी प्रतिज्ञा १३२ अमाशयात वातरोग चिकित्सा १३३ स्नेहपान विधि स्नेहपानके गुण स्नेहनके लिये अपात्र स्वेदनका फल स्वेदनके लिये अपात्र १३४ वमनविधि १३५ सुवांतलक्षण व वमनानन्तर विधि वमनगुण वमनके लिये अपात्रा वमनापवाद कटुत्रिकादि चूर्ण महौषधादि क्वाथ व अनुपान १३८ पक्काशयगत वातके लिये विरेचन १३८ वातनाशक विरेचकयोग १३८ विरेचन फल विरेचनके लिये अपात्र विरेचनांपवाद १३९ सर्वशरीरगत वात चिकित्सा १४० अनुवासन बस्तिका प्रधानत्व प्रतिज्ञा बस्तिनेत्र लक्षण बस्तिनेत्रा निर्माणके योग्य पदार्थ व छिद्रप्रमाण वस्तिके लिए औषधि बस्तिके लिए औषध प्रमाण १४२ औषधका उत्कृष्ट प्रमाण बस्तिदानक्रम सुनिरूढलक्षण निम्ह के पश्चाद्विधेयविधि व . अनुवासनबस्तिप्रयोग १४४ अनुवास के पश्चाद्विधयविधि १४५ १३९ १४० १४२ १३२ १४४ वषयविधि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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