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अन्तिमकथन
सप्तमपरिच्छेदः
मंगलाचरण व प्रतिज्ञा पुरुषनिरूपणप्रतिज्ञा
आत्मस्वरूप विवेचन
आमाके कर्तव्य आदि स्वभाव आत्मा स्वदेद्दपरिमाण है आत्माका नित्यानित्यादि स्वरूप आत्माका उपर्युक्त स्वरूप चिकित्सा
रोगोत्पत्ति मुख्य कारण कर्मोपशांति करनेवाली क्रिया ही
चिकित्सा है
के लिए अत्यावश्यक है १०५
सविपाकाविपाक निर्जरा
उपाय और कालपाकका लक्षण गृहनिर्माण कथन प्रतिज्ञा गृहनिर्माण विधान
शय्या विधान
शयनविधि
रोगीकी दिनचर्या
( VI )
१०३
कर्मो के उदय के लिए निमित्त कारण १०६ रोगोत्पत्ति के हेतु
१०७
कर्मका पर्याय
१०७
१०७
चिकित्सा प्रशंसा
चिकित्सा के उद्देश्य निरीहचिकित्साका फल
चिकित्सा से लाभ
१०४
१०४
१०४
१०५
१०५
१०५
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१०९
११०
११०
११०
रोगोपशमनार्थ बाह्याभ्यंतर चिकित्सा ११२
बाह्यचिकित्सा
११२
११३
११३
११३
११४
१०८
१०८
१०९
१०९
वैद्यको नित्यसंपत्तिकी प्राप्ति
वैद्यके गुण
रोगी गुण
औषधी गुण
परिचारकके गुण
पादचतुष्टयकी आवश्यकता वैद्यकी प्रधानता
वैद्य रोगीका विश्वास
११४
११४
११५
११५
११५
११५
११६
११६
११६
११७
प्रागुक्तकथनसमर्थन
११७
उभयज्ञ वैद्यही चिकित्सा के लिये योग्य ११७ अवैधानि
११८
अज्ञवैद्यकी चिकित्साकी निंदा
११८
अज्ञवैद्यकी चिकित्सासे अनर्थ
११८
चिकित्सा करनेका नियम
११८
स्पर्शपरीक्षा
११९
प्रश्नपरीक्षा
११९
दर्शनपरीक्षा
१२०
महान् व अल्पव्याधि परीक्षा
१२०
रोग के साध्यासाध्यभेद
१२०
अनुपक्रमयाप्यके लक्षण
१२१
कृच्छ्रसाध्य सुसाध्यके लक्षण
१२१
विद्वानोंका आद्यकर्तव्य
१२१
चिकित्सा के विषय में उपेक्षा न करें १२२
अंतिम कथन
१२२
अष्टमपरिच्छेदः
रोगी के प्रति वैद्यका कर्तव्य
योग्य वैद्य
वातरोगाधिकारः
मंगलाचरण व प्रतिज्ञा
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