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________________ विषरोगाधिकारः । ( ४८४ ) कता है । एवं मूर्च्छा, दाह, पीडा, वमन, अतिसार, जडता व आध्मान ( अफराना) आदि विकार उत्पन्न होते हैं । यदि वह अन्न उदर [ पक्काशय ] में चला जावें तो इंदियों में अनेक प्रकार से भ्रम उत्पन्न होते हैं । इंद्रियों में विकृति होती है । वे अपने २ कार्य करने में असमर्थ हो जाते हैं। आग क्रमशः द्रवपदार्थो में डाले हुए विष के लक्षणका कथन करेंगे ॥ १० ॥ द्रवपदार्थगत विषलक्षण. विषयुतसद्रवेषु बहुवर्णविचित्रतरं । भवति सुलक्षणं विविधबुदबुदफेनयुतम् ॥ यदपि च मुद्द्रमाषतुवरीगणपक्कर से । सुरुचिररेखया विरचितं बहुनीलिकया ११ ॥ भावार्थ:- द्रवपदर्थो [ दूध पानी आदि ] में विषका संसर्ग हो तो उन में अनेक प्रकार के विचित्र वर्ण प्रकट होते हैं । तथा उस द्रव में बुलबुले व झाग पैदा होते हैं । मूंग, उडद, तुवर आदि धान्यके द्वारा पकाये हुए रस में यदि विष का संसर्ग हो जाय तो उस में बहुतसी नीलवर्णकी रेखायें दिखने लगती हैं ॥ ११ ॥ Jain Education International मद्य तोयदधितक्रदुग्धगतविशिष्ट विषलक्षण. विषमपि मयतोयमुद्गतकालिकया । विलुलितरेखया प्रकुरुते निजलक्षणतां ॥ दधिगतमल्पपीतसहितं प्रभया सितया । सुरुचिरताम्रया पयसि तक्रगतं च तथा ॥ १२ ॥ 1 भावार्थ:- :- मद्य या जल में यदि विषका संसर्ग हुआ तो उसमें काले वर्णकी रखायें दिखने लगती हैं । दहीमें विष रहा तो वह दही सफेद वर्णके साथ जरा पि वर्णसे भी युक्त हो जाती है । दूध और छाछ में यदि विषमिश्रित होवें तो उन में लाल रंग की रेखायें पैदा होती हैं ॥ १२ ॥ द्रवगत, व शाकादिगत विषलक्षण. पुनरपि तवेषु पतितं प्रतिबिंत्रमिह । द्वितयमथान्यदेव विकृतं न च पश्यति वा ॥ अशन विशेषशाक बहुसूपगणोऽत्र विषा । द्विरसविकीर्णपर्युषितवच्च भवेदविरात् ॥ १३ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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