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विषरोगाधिकारः ।
(४८२)
जिनमुखनिर्गतागमविचारपराभिहितै- ।
रवितथलक्षणैः समवबुध्य यतेत चिरम् ॥ ६ ॥ भावार्यः-विषप्रयोग करनेवाला मनुष्य हसता है, बडबड करता है, जमीन को व्यर्थ ही खुरचता है, अव्यवस्थितचित्त होकर कारण के विना ही तृण काष्ठ आदिको तोडता रहता है । भयभीत होकर अपने पछि देखता है, कोई प्रश्न न करे तो भी उत्तर देता है । उसका मुख विरस व वर्णहीन हो जाता है, इन विपरीत व इसी प्रकार के अन्य विपरीतचेप्टासमूहों से विषप्रयोक्ता को पहिचानना चाहिये ( अर्थात् उपरोक्त लक्षण विषप्रयोग करनेवालों में पाये जाते हैं ) इसी प्रकार विषयुक्त अन्न ( भात ) आदि सभी पदार्थों को जिनेंद्र भगवान के मुखसे उत्पन्न हेत्वादि से अक्ति परमागममें कहे गये अव्यभिचारी लक्षणों से [ यह पदार्थ विषयुक्त है ऐसा ] जानकर उस के प्रतीकार आदि में परिश्रम पूर्वक कार्य करें ॥५॥६॥ ..
प्रतिज्ञा. उपगतसद्विषेषु कथयामि यथाक्रमती । विविधविशेषभोजनगणेष्वपरेषु भृतं ।। विषकृतलक्षणानि तदनंतरमौषधम-1
प्यखिलविषप्रभेदविषवेगविधिं च ततः ॥ ७ ॥ भावार्थ:-आचार्य प्रतिज्ञा करते हैं कि यहां से आगे क्रमशः नाना प्रकार के विशिष्ट भोजनद्रव्य व इतर आसन, वस्त्र पुष्पमाला आदि में विषप्रयोग करने पर उन द्रव्यों में जो विषजन्य लक्षण प्रकट होते हैं उन को, तत्पश्चात् उस के प्रतीकारार्थ औषेध, तदनंतर सम्पूर्ण विषोंके भेद, इस के भी बाद विषजन्य वेगों के स्वरूप को प्रतिपादन करेंगे ॥ ७ ॥
विषयुक्तभोजनकी परीक्षा.. बलिकृतभोजनेन सह मक्षिकसंहतिभि-। मेरणमिह प्रयांति बहुवायसपद्धतयः ।। हुतभुजि तभदृशं नटनटायति दत्तमरं ॥
शिखिगलनीलवर्णमतिदुस्सहधूमयुतं ॥ ८ ॥ १ दांतोन, स्नानजल, उवटन, काथ, छिडकने के वस्तु, चंदन, कस्तुरी आदि लेपन द्रव्य, शय्या, कवच, आभूषण, खडाऊ, आसन, घोडे व हाथी के पीठ, नस्य, धूवा (सिगरेट आदि ) व अंजन द्रव्य में विषप्रयोग किया करते हैं ।
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