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बालग्रहभूततत्राधिकारः।
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भावार्थ:--अष्ट मधुरौषधि वर्ग [ काकोल्यदि ] मुलैठी बंशलोचन व दूधसे पकाये हुए अन्छे घृत को उस बालक को पिलायें । एवं वच, कूठ, राल, इन से उस बालक को सतत धूपन प्रयोग करना चाहिये ।। १०७ ॥
पिशाचग्रहत्न धारण बलि व स्नानस्थान. चापगृध्रसमयूरपक्षसर्पत्वचाविरचिताश्च धारयेत् ।। वर्णपरकबलं च गोष्ठमध्ये शिशो स्नपनमत्र दापयेत् ॥ १८ ॥
भावार्थ:- नीलकंठ (पक्षिविशेष) गृध्र, मयूर इन का पंखा, सांपकी कांचली, इन से बनी हुई माला व पोटली को पहनावें । वर्णपूर युक्त अन्न को अर्पण [बली ] करें एवं उस बालक को गोठे में स्नान करावें ॥ १०८ ॥
राक्षसगृहीत लक्षण. फैनमुद्वमति ज़ुभते च सोद्वेगमूर्ध्वमवलोकते रुदन् । मांसगंध्यपि महाज्वरोऽतिरुद्राक्षसग्रहगृहीत पुत्रकः ॥ १०९ ॥
भावार्थ:-राक्षस ग्रह से पीडित बालक फेन का बमन करता है, उसे जंभाई आती है, उद्वेग के साथ रोते हुए ऊपर देखता है । एवं उस के शरीर से मांसका गंध आता है। महायर से वह पीडित रहता है एवं अति पीडा से युक्त होता है ॥१०९ ॥
राक्षस ग्रहानस्नान, तैल, घृत. नक्तमालबृहतीद्वयाग्निमन्थास्युरेव परिषेचनाय धा-। न्याम्लमप्यहिममंबुदोगगंधापियंगसरलैः शताहकैः ॥ ११० ॥ कांजिकाम्लदधितक्रमिश्रितैः पक्वतैलमनुलेपनं शिशोः । वातरोगहरभेषजैस्सुमृष्टैश्च दुग्धसहितः घृतं पर्चत् ॥ १११ ॥
भावार्थः-करंज, दोनों कटेहरी, अगेथु, इन से पकाये हुए जल से उस राक्षस ग्रह पीडित बालक को स्नान कराना चाहिये । एवं गरमकांजी को भी रनान कार्य के उपयोग में ला सकते हैं । नागरमोथा, वच, प्रियंगु, सरलकाष्ट, शतावरी इनके काथ व कल्क, कांजी, दही व छाछ इन से साधित तैल को मालिश करना चाहिये । एवं वातरोग नाशक औषधि व मधुरौषधि के क्वाथ कल्क व दूध से साधित घृत उसे पिलाना चाहिये ॥ ११० ॥ १११ ॥
राक्षसग्रहन धारण व वलिदान. धारयेदपि शिशुं हरीतकीगौरसर्षपवचा जटान्विता। माल्य भक्ष्यतिलतण्डुलैश्श भैरर्चयेदिह शिशुं वनस्पतौ ।। ११२ ॥
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