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________________ बालग्रहभूतंत्राधिकारः बलिदान . पूर्तभक्ष्यबहुभोजनादिकान् सन्निवेद्य सततं सुपूजयेत् । स्नापयेदपि शिशुं गृहांतरे वर्णकैर्विरचितोज्वले पुरे ॥ ९९ ॥ ( ४६९ ) भावार्थ:- अनेक प्रकार के भक्ष्य भोजन आदि बनाकर, उन से ग्रहकी पूजा करनी चाहिजे । तथा सामने अनेक प्रकार के चित्र विचित्रित कर उस बालक को मकान के बीच में स्नान कराना चाहिये ॥ ९९ ॥ शीत पूतनाग्रहगृहीत लक्षण. शीतपिततनुर्दिवानिशं रोदिति स्वपिति चातिकुंचितः । सांत्रकूजमतिसार्य विरुगन्धिः शिशुर्भवतिशीतकार्दितः ॥ १०० ॥ भावार्थ:-- :--ठण्ड के द्वारा जिस बालक का शरीर कंपाय मान होता है, रात-दिन रोता रहता है एवं अत्यंत संकुचित होकर सोता है, आंतडी में गुडगुडाहट श होता है, दस्त लगता है, शरीर कच्चे किसी दुर्गंध से युक्त होता है तो समझना चाहिये कि वह शीतपूतना ग्रहसे पीडित है ॥ १०० ॥ शीतपूतनाप्न स्नान व तैल. तं कपि राम्रविल्व भल्लातकैः क्वथितवारिभिस्सदा । मूत्रवर्गसुरदारुसर्व गंधेर्विपक्वतिलजं प्रलेपयेत् ॥ १०१ ॥ भावार्थ:- :- उस बालक को कैथ, तुलसी, आम, बेल, भिलावा इन से पकाये हुए पानी से स्नान कराना चाहिये । मूत्रवर्ग [ गाय आदि के आठ प्रकार के मूत्र ] देवदारु, व सर्व सुगंधित औषधियोंसे सिद्ध तिल के तेल से लेपन करना चाहिये ॥ १०१ ॥ शीतपूतमान घृत. रोहिणीखदिर सर्जनिंबभूर्जार्जुनांघ्रिप्रविपक्ववारिभिः । माहिषेण पयसा विपक्क सर्पिः शिशुं प्रतिदिनं प्रपाययेत् ॥ १०२ ॥ भावार्थ:- कायफल, खेर का वृक्ष, रालवृक्ष, नीम, भोजपत्र, अर्जुन [ कुहा ] वृक्ष इन के छाल का कषाय, भैंस का दूध, इन से सिद्ध घृत को शीत पूतना से पीडित बालक को प्रतिदिन पिलाना चाहिये ॥ १०२ ॥ शीत पूतनान धूप व धारण. निवपत्र फणिचर्मसर्जनिर्यासभल्लशशविट्सवाजिगं - 1 स्मृत्य शिशुमत्र चिंचगुंजासकाकलतया स धारयेत् ॥ १०३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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