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कल्याणकारके
भावार्थ:--पूतना पीडित बालक को लाल एरण्ड, सफेद सरसों, हिंगोट स्वर्णबल्ली इन को धारण कराना चाहिये । एवं शून्यग्रह के बीच में सदैव खिचड़ी से बलि प्रदान करना चाहिये ॥ ९४ ॥
अनुपूतना [ यक्ष ] ग्रहगृहीत लक्षण. देष्टि यस्तनमतिज्वरातिसारातिकासवमनप्रतीतहिकाभिरर्तितशिशुर्वसाम्लगंधोत्कटो विगतवर्ण च स्वरः ॥ ९५ ॥
अनुपूतनाउन स्नान. तं विचार्य कथितानुपूतनानामयक्षविषमग्रहार्दितम् । तिक्तवृक्षदलपक्कवारिभिः स्नापयेदधिकमंत्रमंत्रितैः ॥ ९६ ॥
भावार्थ:-जो बालक माता के स्तनके दूध को पीता नहीं, अत्यंत ज्वर, अतिसार, खांसी, वमन और हिक्का से पीडित हो जिस का शरीर वसा या खट्टे गंध से युक्त हो और शरीरका वर्ण बदल गया हो एवं स्वर भी बैठ गया हो तो उसे यक्ष जाति के पूतना ग्रहसे पीडित समझना चाहिये । उसे कडुए वृक्षों के पत्तों से पकाये हुए पानी को मंत्रसे मंत्रित कर उससे स्नान कराना चाहिये ॥ ९५ ॥ ९६ ॥
अनुपूतनाउन तैल व पृत. . कुष्ठसरसतालका पारसौवीरसिद्धतिलनं प्रलेपयेत् । पिप्पलीद्विकविशिष्टमृष्टनगर्विपक्षघृतमेव पायर्यत् ॥ ९७ ।।
भावार्थ:-कूठ, राल, हरताल, मैनसिल, कांजी इन से सिद्ध तिलके तेलका उस बालक के शरीर में मालिश करना चाहिये । एवं पीपल, पीपलामूल और मधुरवर्ग [ काकोल्यादिगण ] के औषधियों से पकाये हुए घृत को पिलाना चाहिये ॥ ९७ ॥
अनुतनाम्न धूप व धारण.. केशकुक्कुटपुरीषचर्मसर्पत्वची घृतयुनाः सुधूपयेत् । धारयदपि सकुक्कुटीमनंतां च विघलतया शिशुं सदा ॥ ९८ ॥
भावार्थः --मुर्गे का रोम, मल व चर्म एवं सर्पका चर्म [ कांचली] के साथ घी मिलाकर धूपन प्रयोग करना चाहिये । एवं कुक्कुटी सारिख कन्दूरी इन को धारण कराना चाहिये ।।८।।
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