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कल्याणकारक
अन्यत लाल होती हैं। मूत्र व मल एकदम पीला हो जाता है, तीव्र ज्वर आता है, अथवा कोई अन्य रोग होता है। वह बालक नाक व कान को बार २ विशेषतया रगडता है। ८५॥
रेवतीग्रहन्न स्नान, अभ्यंग, घृत. तं शिशुं भृकुटिरेवतीसुगंधर्ववंशविषमग्रहार्तितं । सारिबाख्यसहिताश्वगंधश्रृंगीपुनर्नवसमूलसाधितैः ॥ ८६ ॥ मंत्रपूतसलिलैनिषेचयेत्कुष्ट सर्जरससिद्धतलम- । भ्यंजयेदखिलसारसद्रुमैः पकसपिरिति पाययेच्छिशुम् ॥ ८७ ॥
भावार्थ:-ऐसे विषम ग्रह से पीडित बालक को सारिवा [अनंतमूल ] अश्वगंध मेढासिंगी, पुनर्नवा इन के जड से सिद्ध व मंत्र से मंत्रित जल से स्नान कराना चाहिये। एवं कूठ व राल से सिद्ध तेल को लगाना चाहिये। सर्व प्रकार के सारस वृक्षों के साथ पकाये हुए घृतको उस बालक को पिलाना चाहिये ।। ८६ ॥ ८७ ॥
रेवतीनहन्नधूप. धृपयेदपि च संध्ययोस्सदा गृध्रकौशिकपुरीष सद्धृतैः । धारयेद्वरणनिंबजां त्वचा रेवतीग्रहनिवारणी शिशुम् ।। ८८ ॥
भावार्थ:-रेवती ग्रहसे दूषित बालकको दोनों संध्या समय में गृध्र (गीध ) व उलूक ( उल्लू ) के भल को घृत के साथ मिलाकर धूनी देना चाहिये । एवं उस बालक को वरना वृक्ष व नीमकी छाल को पहनाना चाहिये ।। ८८ ॥
__ पूतना [भूत ] ग्रहगृहीत लक्षण. विडिभिन्नमसकृद्विसर्जरन् छर्दयन् हपितलोमकस्तृषा-- । लुर्भवत्यधिककाकगंधवान् पूतनाग्रहगृहीतपुत्राकः ।। ८९ ॥
भावार्थ:-जो बालक बार २ 'फाटे मल विसर्जन कर रहा है, वमन कर रहा है, जिसे रोमांच हो रहा है. तृपा लग रही है एवं जिसका शरीर कौवे के समान बासवाला हो जाता है उसे पूतना [भूतजाति के ग्रहसे पीडित समझना चाहिये ॥८९॥
पूतनाग्रहन स्नान. स्वस्थ एव दिवसे स्वापित्यसो नैव रात्रिषु तमिद्धभूतजित्-- पारिभद्रवरणार्कनीलिकास्फोतपक्वसलिलैनिषेचयेत् ।। ९० ॥
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