________________
बालग्रहभूततंत्राधिकारः।
(४६५)
गरुडग्रहगृहीत लक्षण. पशिगंधसहितो बहुव्रणः स्फोटनिष्ठुरविपाकदाहवान् । सस्तगात्रशिशुरेष सर्वतः संविभेति गरुडग्रहार्तितः ॥ ८२ ॥
भावार्थ:-गरुडग्रहसे पीडित बालक के शरीर में बहुत से व्रण होते हैं और भयंकर पाक व दाह सहित फफोले होते हैं । वह पक्षिकी बास से सयुक्त होता है । और सर्व प्रकार से भयभीत रहता है ॥ ८२ ॥
गरुडग्रहन्न, स्नान, तैल, लेप. आम्रनिंबक दलोकपित्थजंबूद्रुमकथितशीतवारिभिः । स्नापयेदथ च तद्विपकतैलप्रलेपनमपि प्रशस्यते ।। ८३ ॥
भावार्थ:-अनेक औषधियों से सिद्ध तेल को लेपन कराकर आम, नीम, केला, कैथ, जंबू इन वृक्षों के द्वारा पकाये हुए पानीको ठण्डा करके उस गरुडग्रहसे पीडित बच्चे को स्नान कराना चाहिये, एवं उपरोक्त आम्रादिकों से सावित तैल का मालिश व उन्हीं का लेप करना भी हितकर है ॥ ८३ ॥
गरुडग्रहन धृतधूपनादि. यद्वणेषु कथितं चिकित्सितं यद्धृतं पुरुषनामकग्रहे । यच्च रक्षणसुधूपनादिकं तद्धितं शकुनिपीडिते शिशौ ।। ८४ ॥
भावार्थ:-इस गरुडग्रहके उपसर्ग से होनेवाले व्रणो में भी पूर्व कथित व्रण चिकित्साका प्रयोग करना चाहिये । एवं किंपुरुष ग्रहपीडाके विकार में कहा हुआ घृत, मंत्र, रक्षण, धूपन आदि भी इसमें हित है ॥ ८४ ॥
गंधर्व ( रेवती ) ग्रहगृहीत लक्षण | पाण्डुरोगमतिलोहिताननं पीतमूधमलमुत्कटज्वरम् । श्यामदेहमथवान्यरोगिणं घ्राणकर्णमसकृत्प्रमाथिनम् ॥ ८५ ॥
भावार्थ:- गंधर्व जाति के भ्रकुटि, रेवती नामक ग्रहसे पीडित बालक का शरीर पाण्डुर (सेफेदी लिये पीला ) अथवा श्याम वर्णयुक्त होता है । उसकी आंखें
१ तद्भिषक्च इति पाठांतरं ।
२ खस, मुलैटी, नेत्रवाला, सारिवा, कमल, ले.ध, जियंगु, मंजीठ, गेरु इनका लेप करना भी हितकर है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org