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________________ बालग्रहभूततत्राधिकारः। ५. भावार्थ:--उस किन्नर ग्रह से पीडित बालक को वातशामक व सुगंधित औषधियों से सिद्ध तिलका तैल, मालिश व इन हो औषधियोंसे साधित जल से स्नान कराना चाहिये ॥ ७३ ॥. किन्नरग्रहन्न धूप. ‘सर्षपैरखिलरोमसपनिमाकहिंगुवचया तथैव का-! कादनीघृतगुडैश्च धूपयेत्स्नापयनिारी दिवा च चत्वरे ।। ७४ ।। भावार्थ:----उपरोक्त ग्रहबाधित बच्चे को सरसों, सर्व प्रकार ( गाय, बकरा, मनुष्य आदि के ) के बाल, सांपकी कांचली, हींग, बच काकादनी, इन में घी गुर्ड मिलाकर ( आग में डालकर ) इस का धूप देवें एवं रात और दिन में, चौराह में [ उपरोक्त जलसे ] स्नान कराना चाहिये ।। ७४ ।। किन्नरगृहप्न बलि व होम. शालिषष्टिकयवैः पुरं समाकारयेन्मधुरकुष्ठगोघृतेः । होमयेन्निरवशेषतीर्थकृत नामभिःप्रणमनैश्च पंचभिः ॥ ७५ ॥ भावार्थ:-साठी धान, जो इस से पिंड बनाकर बलि देना चाहिये । एवं शांलि. धान्य कूठ गाय का घी, इन से तीर्थंकरों के सम्पूर्ण [१००८] नाम व पंचपरमेष्ठियों के नाम के उच्चारण के साथ २ होम करना चाहिये । जिनसे किन्नरग्रह शांत हो जाते हैं || ७५ ॥ किन्नरगृहन्न माल्यधारण. भूधरश्रवणसोमवल्लिका बिल्वचंदनयुतेंव्वाल्लिका। शिरमूलसहितां गवादनी धारयेद्ग्रथितमालिकां शिशुं ॥ ७६ ॥ भावार्थः-भूधर, गोरखमुण्डा, गिलोय, बेल के कांटे, चंदन, इंद्रलता, सेजनका जड, गवादनी [ इंदायणका जड ] इन से बनी हुई मालाको किन्नरग्रह से पीडित बालक को पहना देना चाहिये ॥ ७६ ।। किंपुरुषग्रहगृहीतलक्षण. । वेदनाभिरिहमूर्छितश्शिशुः चेतयत्यपि मुहुः करांधिभिः। नृत्यतीव विसृजत्यलं मलं मूत्रमप्यतिविनम्य ज़ुभयन् ॥ ७७ ॥ बिल्वकंटका इति ग्रन्थांतरे. ...२ गन्स्योडकः गंडा इति लोके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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