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________________ (१३२) कल्याणकारके . ... भावार्थ:-जो लोग बालकों को अनेक प्रकार से [ देखो भूत आगया ! चुप रह इत्यादि रीति से ] डराते हैं और वार २ मारते हैं व कष्ट देते हैं एवं उन बालकों को गंदा व सूने घरमें पालन पोषण करते हैं, ऐसे बालकों को वे ग्रह कष्ट पहुंचाते है ।। ६९ ।। शौचहीनचरितानमंगलान्मातृदोषपरिभूतपुत्रकान् ।. आश्रितानधिककिनारादिभिस्तान्ब्रवीमि निजलक्षणाकृतीन् ॥ ७० ॥ भावार्थ:-जिनका आचरण शुद्ध नहीं है, जो अमंगल है, मंगल द्रव्यके धारण .आदि से रहित हैं,] माता के दोषसे दूषित है, ऐसे मनुष्य किनर आदि क्रूरप्रहों से पीडित होते हैं। अब उन के लक्षण व आकृति का वर्णन करेंगे ॥ ७० ॥ किन्नरग्रहनहीतलक्षण. स्तब्धष्टिरसृजः सुगंधिको वक्रवक्त्रचलितकपक्ष्मणः । स्तन्यरुट्सलिलचक्षुरल्पतो यः शिशुः कठिनमुष्टिवर्चसः ।। ७१ ।। भावार्थ:-किंनर गृह से पीडित बालक की आंखें स्तब्ध होती हैं । शरीर रक्त के सदृश गंधवाला हो जाता है । मुंह टेढा होता है । एक पलक फडकता है, स्तन पीनेसे द्वेष करता है। आंखोंसे थोडा २ पानी निकलता है, मुट्ठी खूब कडा बांध लेता है मन भी कडा होता है। तात्पर्य यह कि उपरोक्त लक्षण जिस बालक में पाये जाय तो समझना चाहिये कि यह किंनरग्रहग्रहीत है ॥ ७१ ॥ किन्नरग्रहन चिकित्सा. सग्रहो बहुविधैः कुमारवत्तं कुमारचरितैरुपाचरेत् । किन्नरादितशिशुं विशारदो रक्तमाल्यचरुकैरुपाचरेत् ।। ७२ ॥ भावार्थ:-बालग्रह से पीडित बालक की बालग्रहनाशक, अभ्यंग, स्नान, धूप आदि नाना प्रकार के उपायों से, चिकित्सा करनी चाहिये । खास , कर किनर प्रहमहीत बालक को, लाल फूलमाला, लाल नैवेद्य समर्पण आदि से उपचार करना चाहिये ॥७२॥ . . . किन्नग्रहन अभ्यंगस्नान. वातरोगशमनौषधैरसुगंधैस्सुसिद्धतिलजर्जलैस्तथा-। भ्यंगपावनमिह प्रशस्यते किन्नरग्रहग्रहीत पुत्रके ॥ ७३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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