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बालग्रहभूततंत्राधिकारः।
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करता है। इस को यदि मनुष्य प्रतिदिन सेवन करें तो, देवाधिदेव तीर्थंकर भगवान् के समान [ हमेशा ] वय [ जवानपने ] को धारण करता है, अर्थात् जब तक वह जीता है तब तक जवानों के सदृश शक्तिशाली होकर जीता है। इस के सेवन करने के समय किसी प्रकार भी परहेज करने की जरूरत नहीं हैं ॥ २१-२२-२३-२४ ॥
भल्लातकादिघृत. घृतगुडसमभागैस्तुल्यमारुष्करीयं । मृदुपचनविपकं स्नेहमाशूपयुज्य ॥ वलिपलितविहीनो यक्ष्मराजं विजित्यो
र्जितसुखसीहतस्स्याद्रोणमात्रं मनुष्यः ॥२५॥ भावार्थ:-समान भाग घी व गुड के साथ भिलावे के तैल को मंदाग्नि द्वारा अच्छी तरह पका कर, एक द्रोणप्रमाण [६४ तोले का १६ सेर ] सेवन करें तो राजयक्ष्मा रोग दूर हो जाता है और वह मनुष्य वलि व पलित [बाल सफेद हो जाना ] से रहित हो कर उत्कृष्ट सुखी होता है ॥ २५ ॥
शबरादिघृत. शबरतुरगंगंधा वज्रवल्ली विदारीक्षुरकपिफलकूष्माण्डैर्विपक्वाज्यतैलं । अनदिनमनुलिप्यात्मांगसंपर्दनायैः।
क्षयगदमपनीय स्थूलकायो नरः स्यात् ।। २६ ॥ भावार्थ:-सफेद लोध, असगंध, अस्थिसंहारी [ हाड संकरी ] विदारीकंद, गोखुर, कौंच के बीज, जायफल, कूप्मांड [ सफेद कद्दू ] इन से पकाये हुए घी तैल को प्रतिदिन लगाकर मालिश वगैरह करें तो क्षयरोग दूर हो कर मनुष्य का शरीर पुष्ट बन जाता है ॥२६॥
क्षयरोगनाशक दधि. अथ श्रृतपयसीक्षोः सद्विकारानुमिश्रे । मुविमलतरवर्षावंघिचूर्णप्रयुक्ते ॥ समरिचवरहिंगुस्तीकतकान्वितेऽन्ये- ।
शुरिह सुरभिदध्ना तेन भुंजीत शोपी ॥ २७ ॥ भावार्थ:-पकाये हुए दूध में शकर, पुनर्नवाके जड़ के चूर्ण, काली मिरच, हींग
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