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कल्याणकारके
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महाक्षयरोगांतक. त्रिकटुक त्रुटि निंबारग्वधग्रंथिभल्ला- । तकदहनसुराष्ट्रोदूतपथ्याजमोद - ॥ रसनखदिरधात्रीशालगायत्रिकाख्यैः क्वथितजलविभागैः पक्वमाज्यांच्चतुर्भिः ॥ २१ ॥
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अथ कथितघृते त्रिंशत्सितायाः पलानि । प्रकटगुणतुगाक्षीर्याश्च पद्मस्थमाज्यं ॥ विषतरुविडंग क्वाथ सप्रस्थयुग्मं । खजमथितमशेषं तं तु दत्वोक्तकुंभे ॥ २२ ॥ भुवि बहुतरधान्ये चानुविन्यस्तमेत- । गतवति सति मासार्धे तदुद्धृत्य यत्नात् ॥ प्रतिदिनमिह लीडा नित्यमेकैकमंशं ॥ पलमितमनुपानं क्षरिमस्य प्रकुर्यात् ॥ २३ ॥ घृतमिदमतिमेध्यं वृष्यमायुष्यहतुः । प्रशमयति च यक्ष्माणं तथा पाण्डुरोगान् || भवति न परिहारोस्त्येतदेवोपयुज्य । प्रतिदिनमथ मर्त्यः तीर्थकृद्वा वयस्थः ॥ २४ ॥
भावार्थः—सोंठ, मिरच, पीपल, छोटी इलायची, नींब, अमलतास, नागरमोथा, भिलावा, चित्रक, फिटकरी, हरउ, अजवायन, विजयसार, खैर, आंवला, शाल, [सालवृक्ष ] विखदिर [ दुर्गंध खैर ] इन के विधि प्रकार बने हुए चार भाग काढे को एक भाग घी में डाल कर [ विधि प्रकार ] पकायें । इस प्रकार सिद्ध एक प्रस्थ ( ६४ तोले ) घृत में तीस पल [ १२० तोले ] मिश्री, छह पल [ २४ तोले ] वंशलोचन, और दो प्रस्थ [ १२८ तोले ] वायविडंग के काढा मिलावें और अच्छी तरह मथनी से मथें । पश्चात् इस को पहिले कहे डाल कर, मुंह बंद कर के धान्य की राशि के बीच में रखें । के बाद उसे वहां से यत्नपूर्वक निकाल कर इसे प्रतिदिन एक २ पलप्रमाण ( ४ तोले ) चाट कर ऊपर से गाय का दूध पीना चाहिये । यह घृत अत्यंत मेध्य [ बुद्धि को बढानेवाला ] वृष्य, आयु को बढानेवाला (रसायन) है । राजयक्ष्मा व पांडुरोग को शमन
हुए, मिड्डी के घडे में पंद्रह दिन बीत जाने के
१ चार प्रस्थ, २ एक प्रस्थ
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