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बालग्रहभूतंत्राधिकारः
(४४९)
भावार्थ:-अडूसा के फूल व जड से पकाये हुए घत को क्षयरोगी पावें । इसे ' वृषधृत ' या ' वासात ' कहते हैं। तथा जौ, तिल, गुड, उडद, शाली इन के आटे का बनया हुआ पुआ भी खावें । एवं भिलावा, अश्वगंध, माष, गोखुर, सेहुण्ड शतावर इन से पक्व भक्ष्यों को भी खावें ॥ १७ ॥
क्षयनाशक घृत. शकृत इह रसैर्वाजाश्वगोदकाना-। ममृतखदिरमूर्वी तेज़िनीक्याथभागैः ।। घतयुतपयसा भागैर्नवैतान्सरास्ना-।
त्रिकुटुकमधुकैस्तैस्सार्धपकं लिहेद्वा ॥ १८ ॥ भावार्थ:--बकरी, घोडा, गाय इनका मलरस एक २ भाग, गिलोय, खेर की छाल, मूर्वा,चव्य इन पृथक् २ औषधियों का कषाय एक २ भाग, एक भाग दूध, एक भाग घी, इन नौ भाग द्रव्यों को एकत्रा डालकर पकायें। इस में रास्ना, सोंठ, मिरच, पीपल, मुलैठी इनके कल्क भी डालें। विधिप्रकार सिद्ध किये हुए इस घृतको चाटें तो राजयक्ष्मा रोग शांत होता है ॥ १८ ॥
क्षयरोगांतक घृत. खदिरकुटजपाठापाटलीबिल्वभल्ला- । सकनृपबृहतीसरण्डकारंजयुग्मैः ।। यवबदरकुलत्थोग्राग्निमंदाग्निकःस्वैः ।। क्वथितजलविभागैः षडिरेको घृतस्य ॥ १९ ॥ स्नुहिपयसि हरीतक्यासुराकै सचव्यैः । प्रशमयति विपक्वं शोषरोगं घृतं तत् ॥ जठरमखिलमेहान्वातरोगानशेषा-1
नतिबहुविषमोग्रोपद्रवग्रंथिंबंधान् ।। २० ॥ भावार्थः-खैरकी छाल, कूडाकी छाल, पाठा, पाढल, बेल, भिलावा, अमलतास, बडी कटेली, एरण्ड, करंज, पूतिकरंज, जौ, बेर, कुलथी, बच, चित्रक, इनका मंदाग्नि से पकाया हुआ काढा छह भाग, एक भाग घी और थोहरका दूध, हरड सामुदनमक [ अथवा देवदारु ] चाव, इन के कल्क से सिद्ध किया गया घृत, राजायक्ष्मा उदर, सर्व प्रकार के प्रमेह, सर्वविध वातरोग और अतिउपद्रव युक्त विषमग्रंथि रोग को भी दूर करता है ॥ २० ॥
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