SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 541
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४८) कल्याणकारके - भावार्थः-मधुर गुणयुक्त सर्वप्रकार के चावल, जौ, एवं मधुर गेहुं आदि धान्य व ऐसे अन्य पदाथों से बने हुए अनेक प्रकार के भक्ष्य, घी, गुड, दूध, मूंगकी दाल शक्तिकारक फलगण, इष्ट व पुष्टिकारक शाकोंके साथ २ क्षय रोगी को भोजन कराना चाहिये ॥१४॥ क्षय नाशकयोग. विकटुकघनचव्यसद्विडंगपचूर्ण । घृतगुडलुीलंत वा प्रातरुत्थाय लीद्वा ॥ अथ घृतगुडयुक्तद्राक्षया पिप्पलीनां । सततमदुपयोशन् सक्षयस्य क्षयः स्यात् ॥ १५ ॥ भावार्थ:--त्रिकटु, मोथा, चाव, वायविडंग इन के चूर्णको घी व गुड में अच्छीतरह मिलाकर प्रातःकाल उठकर चाटें अथवा द्राक्षा व पीपल को घी व गुड के साथ मिलाकर बाद में दूध पीयें तो उससे क्षयरोग का क्षय होता है ॥ १५ ॥ तिलादि योग. तिलपललसमांशं माषचूर्ण तयोस्त-। सहशतुरगगंधाधुलिमाज्येन पीत्वा ॥ गुडयुतपयसा सद्बाजिगंधासुकल्कैः । प्रतिदिनमनुलिप्तः स्थूलतामेति मर्त्यः ॥ १६ ॥ भावार्थ:-तिल का चूर्ण, उडद के चूर्ण उन दोनों को बराबर लेवें । इन. दोनों चों के बराबर असगंध के चर्ण मिलाकर घी और गुडमिश्रित दूध के साथ पीना चाहिये । एवं असगंध के कल्क को प्रतिदिन शरीर में लेपन करना चाहिये । उससे क्षयरोगपीडित मनुष्य स्थूल हो जाता है ॥ १६॥ क्षयनाशक योगांतर वृषकुसुमसमूलैः पकसर्पिः पिवेद्वा । यवतिलगुडमाषैः शालिपिष्टैरपूपान् ॥ दहनतुरगगंधामापवजीलतागो- । क्षुरयुतशतमूलैर्भक्षयेत्पकमक्षान् ॥ १७ ॥ १ जैसे तिलचूर्ण १ ० तोला, उडदका चूर्ण १० तोला, असगंधका चूर्ण, २० तोला. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy