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________________ (४५२) कल्याणकारके और थोडा छाछ मिलाकर रखें। दूसरे दिन इस को सुगंध दही के साथ मिलाकर क्षय रोगी भोजन करें ॥२७॥ क्षयरोगीको अन्नपान. तदति लघुविपाकी द्रव्यमनिप्रदं य-। द्रुचिकरमतिवृष्यं पुष्टिकृन्मृष्टमेतत् ॥ सततमिह नियोज्गं शोषिणामनपानं । बहुविधरसभेदैरिष्टशाकविशिष्टैः ॥ २८ ॥ भावार्थ:-जल्दी पकनेवाले, अग्नि को दीप्त करनेवाले, रुचिकारक, अत्यंत वृष्य, पुष्टिकारक, शक्तिवर्द्धक ऐसे द्रव्यों से तैयार किये हुए अन्नपानोंको, नानाप्रकार के रस व प्रिय अच्छे शाकों के साथ राजयक्ष्मा से पीडित मनुष्य को देना चाहिये ॥२८॥ __ अथ ममूरिकारोगाधिकारः। _मसूरिका निदान. अथ ग्रहक्षोभवशाद्विषांघ्रिप-प्रभूतपुष्पोत्कटगंधवासनात् । विषप्रयोगाद्विषमाशनाशना-दृतुमकोपादतिधर्मकर्मणः ॥ २९॥ प्रसिद्धमंत्राहुतिहोमतो वधान्महोपसर्गान्मुनिवृंदरोषतः। भवंति रक्तासितपीतपाण्डुरा बहुप्रकाराकृतयो मसूरिकाः ॥ ३०॥ भावार्थ:-कोई क्रूरग्रहों के कोप से, विषवृक्षों के विषैले फूलों के सूंघने से, विषप्रयोग से, विषम भोजन करने से, ऋतु कोप से (ऋतुओंके स्वभाव बदलजाना) धार्मिक कार्यों को उल्लंघन करने से, हिंसामय यज्ञ करने से, हिंसा करने से, मुनि आदि सत्पुरुषों को महान् उपसर्ग करने से, मुनियों के रोष से शरीर में बहुत प्रकार के आकारवाले मसूर के समान लाल, काले, सफेद व पीले दाने शरीर में निकलते हैं, उसे मसरिका रोग (देवि, माता चेचक ) कहते हैं ॥ २९ ॥ ३० ॥ मसूरिकाकी आकृति. स्वदोषभेदासिकता ससपा मसूरसंस्थानयुता ममूरिकाः। समस्तधान्याखिलवैदलोपमाः सकालपीताः फलसभिभास्तथा ॥ ३१ ॥ भावार्थ:-वे मसारिकायें अपने २ दापोंके भेदसे बालू [ रेत ] सरसों, मसर के १ धर्म इति पाठांतरं. २ काले पीले फल के समान, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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