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________________ ( ४४६ ) कल्याणकारके धवलनयनता निद्राति तत्पीनसत्वं । भवति हि खलु शोषे पूर्वरूपाणि तानि ॥ ८ ॥ भावार्थ - गाढ़ा कफ बहुत गिरना, श्वास होना, सर्वांग शिथिलता होजाना, चमन होना, गला सूखना, अग्निमांद्य होना, मद आना, आंखे सफेद हो जाना, अधिक नींद आना, पीनस होना थे राजयक्ष्माका पूर्वरूप हैं अर्थात् जिनको राजयक्ष्मा होनेवाला होता है उनको रोग होनेके पहिले २ उपर्युक्त लक्षण प्रकट होते हैं ॥ ८ ॥ शुकशिखिशकुनैस्तै कौशिकैः काकागृनैः । कपिगणकृकलासैनीयते स्वप्नकाले || Jain Education International खरपरुषविशुष्कां वा नदीं यः प्रपश्येत् । दवदहनविपन्नान् रूक्षवृक्षान् सघुमान् ॥ ९ ॥ भावार्थ:- जिस को राजयक्ष्मा होनोवाला होता है उसे स्वप्न में, तोते, मयूर [ मोर ] शकुन [ पक्षिविशेष ] नकुल, कौवा, गीध बंदर, गिरगट ये उस को ( पीठपर बिठालकर ) ले जाते हुए अर्थात् उन के पीठ पर अपन सवारी करते हुए दीखाता है । खरदरा कठिन (पत्थर आदि से युक्त) जलरहित नदी और दावाग्निसे जलते हुए धूम से व्याप्त रूक्षवृक्ष भी दीखते हैं । उपरोक्त स्वप्नों को देखना यह भी राज यक्ष्मा का पूर्वरूप हैं ॥ ९ ॥ वात आदिके भेदसे राजयक्ष्माका लक्षण. पवनकृतविकारान्नष्टभिन्नस्वरोन्त- । र्गतनिजकृशपार्श्वो वंससंकोचनं च । ज्वरयुतपरिदाहासृग्विकारोऽतिसाराः । क्षयगतनिजरूपाण्यत्र पित्तोद्भवानि ॥ १० ॥ अरुचिरपि च कासं कंठजातं क्षतं तत् । कफकृत बहुरूपाण्युत्तमांगे गुरुत्वम् ॥ इतिदशभिरथैकेनाधिकैर्वा क्षयार्त । परिहरतु यशोऽर्थी पंचपतिः स्वरूपैः ॥ ११ ॥ भावार्थ:-- राजयक्ष्मारोग में बात के उद्रेक से १. स्वर नष्ट या भिन्न हो जाता २. दोनों कुश प्रार्श्व ( फंसली ) अन्दर चले जाते हैं, ३. अंस ( कंधा ) का संकोच For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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