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क्षुद्ररोगाधिकारः ।
( ४३९ )
भावार्थ:- जिस प्रकार पानी में गिर जाने पर एकदम ऐसा भय उत्पन्न होता है कि अभी प्राण निकल जाता है और मूछके साथ ही साथ स्मरण [ बुद्धि ] शक्ति भी अवश्य नष्ट हो जाती है उसी प्रकार इस रोग में भी प्राणघातकभय एवं मूर्च्छा के साथ स्मरणशक्ति का भी नाश होता है । इसलिये इसे अपस्मार रोग कहते हैं । यद्यपि यह तीनों दोषों से उत्पन्न होता है फिर भी प्रत्येक में वायुका प्राबल्य रहता है । वांत, पित्त, कफज अपस्मारों में यथाक्रम से [ बैग के आरम्भ में ] वह रोगी काला; हरा ( अथवा बीला) व सफेदवर्ण के प्राणि व रूपविशेषों को देख कर भूमि पर गिर जाता है । जमीन पर गिरा हुआ वह मनुष्य दांतोको खाते मन करते हुए, ऊर्ध्वश्वास व ऊदृष्टि होकर बहुत जोरसे चिल्लाता है । यह अपस्मार यम के समान मरण के गुणोंसे संयुक्त है अर्थात् मरणपद है । इस से मनुष्य मर मरकर बहुत कष्ट से जीता है अर्थात् यह एक अत्यंत भयंकर रोग है ॥ ११२ ॥ ११३ ॥
क्षणमात्र से ही
हुए कफ को
अपस्मार की उत्पत्ति में भ्रम.
व्रजति सहसा कस्माद्योऽयं स्वयं मुहुरागतः । कथित गुणदोरुभ्ऽतिशीघ्रगतागतैः ॥ त्वरितमिह सोपस्माराख्यः प्रशाम्यति दोषजो । ग्रहकृत इति प्रायः केचित् ब्रुवत्यबुधा जनाः ॥ ११४ ॥
भावार्थ:-- शीघ्र गमन व आगमनशील व पूर्वोक्त गुणोंसे संयुक्त वातादि दोषों से उत्पन्न यह अपस्मार रोग अकस्मात् अपने आप ही आकर, शीघ्र चला जाता है । क्योंकि यह विना कारण के ही शमन हो जाता है इसलिये कुछ मूर्ख मनुष्य इस को ग्रहों के उपद्रवसे उत्पन्न मानते हैं । लेकिन ऐसी बात नहीं है । यह दोषज ही है ॥ ११४ ॥
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रोगोंकी विलंबाविलंब उत्पत्ति.
कतिचिदिह दोषैरेवाशुद्भवत्यधिकामयाः ! पुनरतिचिरात्कालात्केचित्स्वभावत एव ते । सकलगुणसामया युक्तोऽपि बीजगणो यथा । भवति भुवि प्रत्यात्मानं चिराचिरभेदतः ॥ ११५ ॥
• इसका वातज, पित्तज, कफज, सन्निपातज इस प्रकार चार भेद है । २ अपस्मार का सामान्य लक्षण है।
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