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________________ कल्याणकारके AAAA उन्मादनाशक अन्यविधि. कूपेऽतिपूतिबहुभीमशवाकुलेऽस्मिन् । तं शाययेदतिमहाबहलांधकार ॥ सम्यग्ललाटतटसर्वशिराश्च लिदा । रक्तप्रमोक्षणमपीह भिषग्विदध्यात् ॥ ११० ॥ भावार्थः-अंधेरे कूए में और जहां अत्यंत भयंकर अनेक शव पडे हों और अत्याधक दुर्गंध आरहा हो एवं अंधकार हो वहां उस उन्मादीको सुलाना चाहिये । तथा कुशल वैद्य रोगी के ललाट में रहनेवाले सर्व शिराओं को व्यथन कर के रक्तमोक्षण भी करें ॥ ११० ॥ उन्माद में पथ्य. स्निग्धातिधौतमधुरातिगुरुप्रकार । निद्राकराणि बहुभोजनपानकानि ।। मेधावहान्यतिमदाशमैकहेतून् । संशोधनानि सततं विदधीत दोषान् ॥ १११ ॥ भावार्थ:-उन्मादीकी बुद्धि को ठिकाने में लानेवाले और मदशमन के कारण भूत स्निग्ध, अतिशुद्ध, मधुर, गुरु, निद्राकारक ऐसे बहुत प्रकारके भोजनपानादि द्रव्योंको देवें । एवं हमेशा दोषों के शोधन भी करते रहें ॥१११॥ अपस्मार निदान. भयमिह भवत्यप्सु प्राणैर्यतः पारमुच्यते ! स्मरणमपि तवावश्यं विनश्यति मूच्छेया ।। प्रबलमरुतापस्माराख्यस्त्रिदोषगुणोप्यसा- । यसितहरितश्वेतैर्भूतः क्षणात्पतति क्षितौ ।। ११२ ॥ . भुवि निपतितो दंतान्खादन् वमन् कफमुन्द्धसन् । बलिककरगात्रोदृत्ताक्षः स्वयं बहु कूजति ।। मरणगुणयुक्तापस्मारोऽयमंतकसन्निभ-। स्तत इह नरो मृत्वा मृत्वात्र जीवति कृच्छ्रतः ॥ ११३ ।। ..१ उपरोक्त कार्यों को करने से प्रायः उस का दिल ठिकाने में आजाया करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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