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क्षुद्ररोगाधिकारः
(४३३)
भावार्थ:-जिसका ज्वर दाह पाण्डु आदि रोग शांत होगये हों, किंतु [ शांत होते ही ] शीघ्र अत्यधिक खटाई और अन्य [ पित्तोद्रेक करने वाले ] अपथ्य पदार्थों को खाता. है व अपथ्याचरण को करता है तो उस का पित्त प्रकुपित होकर, शरीर को एकदम सफेद [ या पीला ] करता है, भयंकर सूजन उत्पन्न करता है, ( तंद्रा निर्बलता आदिकों को पैदा करता है ) जिसे कामला रोग कहते हैं ।। ९४ ॥
पांडुरोग चिकित्सा. अभिहितक्रमपाण्डुगदातुरो । विदितशुद्धतनघतशर्करा- ॥ विललितत्रिफलामथवा निशा- । द्वयमयस्त्रिकटुं सततं लिहेत् ।। ९५ ॥
भावार्थ:--उपर्युक्त प्रकारके पाण्डुरोगोंसे पीडित रोगीको सबसे पहिले बमन विरेचनादिसे शरीर शोधन करना चाहिये। हरड, बहेड, आंवला, सोंठ भिरच पीपल इन के चूर्णको अथवा हलदी दारुहलदी, सोंठ भिरच पीपल इनके चूर्ण को लोहभस्म के साथ घी शक्कर मिलाकर सतत चाटना चाहिये ॥९५||
पाण्डुरोगन्न योग. अपि विडंगयुतत्रिफलांबुदान् । त्रिकटुचित्रकधाव्यजमोदकान् ।। अति विचर्ण्य गुडान् सघृताप्लुतान् । निखिलसारतरूदकसाधितान् ॥१६॥ इति विपकमिदं बहलं लिहन् । जयति पाण्डुगदानथ कामलाम् ॥ अपि च शर्करया त्रिकटुं तथा । गुडयुतं च गवां पय एव वा ॥९७॥
कामलाकी चिकित्सा. यदिह शोफचिकित्सितमीरितं तदपि कामालिनां सततं हितम् । गुडहरीतकमूत्रसुभस्मनिसृतजलं यवशालिगणौदनम् ॥ ९८ ॥
भावार्थ:-वायविडंग, त्रिफला, ( सोंठ मिरच, पीपल ) नागरमोथा, त्रिकटु, चित्रक, आमला, अजवाईन इनको अच्छीतरह चूर्णकर घी व गुड में भिगोयें। फिर इस में शालसारदि गणोक्त वृक्षों के काथ डाल कर तब तक पकायें जब तक वह अवलेह के समान गाढा न हों। यह इस प्रकार सिद्ध औषध सर्व पाण्डुरोगोंको जीतता है । एवं कामला रोगको भी जीतता है तथा शक्कर के साथ त्रिकुटु अथवा गुड के साथ गायका दूध सेवन करना भी हितकर है। शोफ विकार के लिये जो चिकित्सा
१ इसका अर्थ इस प्रकार भी हो सकता है कि त्रिफला के चूर्ण, अथवा हलदी दारुहलदी के चूर्ण अथवा लोहभस्म, अथवा सौंठ भिरच पपिल के चूर्ण को घी शक्कर के साथ चाटना चाहिये।
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