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क्षुद्ररोगाधिकारः।
हिक्कानाशक योग. शर्करामधुकमागधिकानां । चूर्णमेव शमयत्यतिहिक्कां ॥ हैमगैरिकमथाज्यसमेतं । लेहयेन्मणिशिलामथवापि ॥ ८३ ॥
भावार्थ:-शक्कर, मुलेठी, पीपल, इनके चूर्ण के भक्षणसे अत्यंत वेगसहित हिक्का भी उपशम होता है । एवं सोना व मेरू को घी में मिलाकर चाटना चाहिये अथवा मनःशिलाको बी में मिश्रकर चाटना चाहिये ।। ८३ ।।
हिक्कानाश योगन्द्रय. सैंधवाध्यमाहमाम्लरसं वा । सोप्णदुग्धमथवा घृतनिश्रम् ॥ क्षारचूर्णपरिकर्णिमनल्पम् । प्रातरेव स पिवेदिह हिक्की ।। ८४ ॥
भावार्थ-हिक्का गंगवालों को, प्रातःकाल खट्टे बिजोरे लिंबु आदि के खट्टे रस में सेंधालोग मिलाकर कुछ गरम करके पिलावें । अथवा गरमदृव मे घी व क्षारों के चूर्ण डालकर पिलायें तो शीघ्र ही हिक्का नाश होता है ॥ ८४ ॥
हिक्कान अन्यान्य योग. अंजनामलककोलसलाना- । तर्पण वृतगुडप्लुतमिष्टं ॥ हिकिनां कटुकरोहिणिको वा । पाटलीकुसुमतत्फलकल्कः ॥ ८५ ॥
भावार्थ:-सुरमा, आंवला, बेर, खील इन को घी व गुडमें भिगोकर हिक्कियों को खिलाना चाहिए। कटुक रोहिणी का प्रयोग भी उनके लिए उपयोगी है। एवं पाढल का पुष्प व फल का कलक बनाकर प्रयोग करना भी हितकारक है ॥ ८५ ॥
अधिकऊर्ध्वयातयुक्त हिक्काचिकित्सा. ऊर्धवातबहुलास्वथ हिक्का- । स्वादिशदधिकवस्तिविधानम् ॥ सैंधवाम्लसहितं च विरेकम् । योजयेदहिमभोजनवर्गम् ॥ ८६ ॥ - भावार्थ:- अत्यधिक ऊबात से युक्त हिका में विशेषतया बस्तिविधानक, प्रयोग करना चाहिये। सेंधालोण व आम्झ से युक्त विरेचनकी भी योजना करें तथा उष्णभोजनवर्ग का भी प्रयोग करें ॥ ८६ ॥
अथ प्रतिश्यायरोगाधिकारः।
प्रतिश्यायदान. हिकास्सम्यग्विधिवदभिधाय प्रतिश्यायवर्गान् । वक्ष्ये साक्षाद्विहितसकलैः लक्षणेभैपजाद्यैः ॥
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