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कल्याणकारके
हड्डी) के मूलसे, अर्थात् कंठ और हृदय की संधिसे आता है और जिस का नाम भी सार्थक है ऐसे स्वलक्षण से लक्षित उसे क्षुद्रिका हिक्का कहते हैं ॥ ७९ ॥
महाप्रलय व गंभीरका हिक्कालक्षण. स्ववेगपरिपीडितात्मबहु मर्मनिर्मूलिका | महासहितनामिका भवति देहसंचालिनी ॥
स्वनाभिमभिभूय हिकायांत या च हिक्का नरा- 1 नुपद्रवति च प्रणादयुतघोरगंभीरिका ॥ ८० ॥
भावार्थ:-- जो ममस्थानों को अपने वेग के द्वारा अत्यंत पीडित करते हुए
और समस्त शरीरको कम्पाते हुए हमेशा आता है उसे महाहिक्का कहते हैं । और ज नाभिस्थानको दबाकर उत्पन्न होता है व शरीर में अनेक ज्वरादि उपद्रवोंको उत्पन्न करता है एवं गम्भीर शब्द से युक्त होकर आता है उसे गंभीरका हिक्का हते हैं ॥ ८० ॥
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हिक्काके असाध्य लक्षण.
दीर्घीकरोति तनुमूर्ध्वगतां च दृष्टिं । हिका नरः क्षत्रधुना परिपीडितांग: timiseriesपरः परिभग्नपार्श्वयत्यातुरश्च भिषजा परिवर्जनीयः ॥ ८१ ॥
भावार्थ:- जो हिक्का रोगी के शरीरको लंबा बनाता है अर्थात् तनाव उत्पन्न करता है, जिसमें रोगी अत्यंत क्षण है, दृष्टिको ऊपर करता है, और छींक से युक्त है, अरोचकतासे सहित है एवं जिसका पार्श्व ( पसली टूटासा मालुम होता है ऐसे रोगी को वैद्य असाध्य समझकर छोडें ॥ ८१ ॥
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हिका चिचित्सा.
हिकोहारस्थापनार्थ च वेगा प्राणायामै स्वर्जन स्ताडनैव । म
| नोदुं धीमान् योजयेद्योजनीयैः ॥ शीघ्रं त्रासयेद्वा जलाः ॥ ८२ ॥
भावार्थ:- हिक्का के उदार को बैठालने एवं वेगों को रोकने के लिये, अर्थात् उस के प्रकोप को रोकने के लिये कुशल वैद्य योग्य योजनावों को करें । इसके लिये प्राणायाम कराना, तर्जन [ डराना ] ताडन करना और जल आदि से कष्ट देना हितकर है || ८२ ॥
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